Friday 9 January, 2009

मैं काम नहीं करूँगा.....

मैं काम नहीं करूँगा.....मुझे ज़्यादा पैसे चाहिए......एक फौजी ने अपने ऑफिसर से कहा....यही बात एक पुलिस वाले ने अपने ऑफिसर से कहा..... पुलिसवाला और वो फौजी हड़ताल पर चले गए.....सारे देश के फौजी और पुलिस हड़ताल पर चले गए......सोचिये तब क्या होगा?हड़ताल से न केवल आर्थिक नुकसान होता है, इससे आम जनता को भी काफी परेशानी होती है.....हम हमेशा सुनते हैं की आज डॉक्टरों ने हड़ताल कर दिया तो आज ट्रासपोर्ट वालों ने हड़ताल कर दिया....क्या अपनी बात को मनवाने का हड़ताल ही एक रास्ता बचता है?सबको ज़्यादा से ज़्यादा चाहिए.....किसी को १ लाख मिलता है तो उसे २ लाख चाहिए.....वे कभी नही सोचते की क्यों निजी कंपनिया दिन दुनी रात चौगुनी मुनाफे कमाते हैं और पब्लिक सेक्टर की कंपनिया दिनों दिन नुक्सान पर नुकसान सहते जाते हैं....उन्हें कंपनी के मुनाफे या घाटे से कोई मतलब नही है....हड़तालियों को तो बस अपनी तन्खवाह चाहिए....जब की निजी कंपनिया मुनाफे के अनुसार ही किसी कर्मचारी को रखती या निकालती हैं....अगर सेना, पुलिस और चिकित्सा जैसी सेवाओ के कर्मचारी भी हड़ताल का रास्ता अपनायेगे तो इस देश का भगवन ही मालिक है......तेल कंपनियों और ट्रासपोर्ट वालों के हड़ताल ने आम जनता को काफी परेशान कर दिया.....आख़िर कर सरकार के फटकार से तेल कंपनिया रस्ते पर आयी.....दरअसल जब कोई इन ज़रूरी सेवाओ में लगा होता है तो सबसे ऊपर उसकी प्राथमिकता लोगो की सेवा होती है, सरकारी सेवा का अंग होकर कोई अपनी मर्ज़ी नही चला सकता....उसे हर कीमत पर अपना फ़र्ज़ निभाना ही होगा....वरना उनके लिए बहार का रास्ता खुला है.....

2 comments:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

सच बोला संदीप ने, मगर सुनेगा कौन?
प्रश्न सभी के ठीक हैं, उत्तर देगा कौन?
उत्तर देगा कौन, समूचा सिस्टम दोषी.
खुद जनता ही तोङे तो टूटे खामोशी.
कह साधक कवि,सदा उजाला किया दीप ने.
स्वयं जलेगा कौन, सच बोला संदीप ने.

राजीव करूणानिधि said...

सही कहा संदीप आपने. हड़ताल कभी गाँधी जी का अस्त्र हुआ करता था, पर अब अपना उल्लू सीधा करने का सस्ता हथियार बन चुका है. वैसे ये सरकारी तंत्र की नाकामी की ओर इशारा करता है. जिस तेज़ी से महगाई बढ़ी है उसके मुकाबले तनख्वाह पुरानी हवेली की तरह जर्जर हो चुकी है.