Friday, 10 April 2009

८४ की याद........

1९८४ के मैं लगभग ३ साल का था....मुझे याद नही की मैंने अपने बचपन के सिख दंगों क्या किसी सिख को भी देखा हो.....लेकिन अब २५ साल बाद मुझे उस दंगे के बारे के सब कुछ पता चला, वो भी एक फ़िल्म से.......अमु है उस फ़िल्म का नाम....जिसे मैंने कल रात को देखा.....पेश है उस फ़िल्म के बारे के कुछ विचार.......
लेखिका, निर्देशक सोनाली बोस की धमाकेदार पहली फ़िल्म भावनात्मक ड्रामे और दिल दहला देने वाले राजनीतिक थ्रिलर दोनों का काम किया। २१ साल की भारतीय अमेरिकन लड़की काजू अपने परिवार को मिलने भारत आती है। दिल्ली में अपने दौरे के दौरान वो अपने अतीत के राजों से वाकिफ होती है। उसका सहयोगी कबीर उसके और उसकी तलाश के प्रति गहरा आकर्षित है। अपनी यात्रा में उसका अचानक सामना दिल्ली में हुए १९८४ के जनसंहार के दबाये गए इतिहास से होता है। अतीत का ये हादसा आज के इन युवाओ पर कैसे असर डालता है ? हर मोड़ पर वह बाधायों का सामना करते हुए आख़िर में सच को जानते हैं....
भारतीय सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म से सभी महतवपूर्ण संवाद काट दिए। जो इस बात का सबूत है की इस जनसंहार के बारे में सरकार की नियत क्या रही। सरकारी सेंसर बोर्ड ने इसे A प्रमाण पत्र दिया और इसके पीछे तर्क दिया गया था की युवा पीढी ऐसे इतिहास को क्यों जाने जो दफ़न करके भूला दिया गया है। ज़ाहिर था, भारत, USA, कनाडा के थिएटर में जब आयी तो इसने हर मुल्क के युवाओं का दिल जीत लिया.....अब वक्त आ गया है की इस इतिहास को देश का हर युवा जान ले....टाट के लगी पैबंद को पहचान ले.......

1 comment:

preeti pandey said...

sandeep ji aapne bilkul thik likha hai.apne desh se sambandhit har baat ko hum yuvaao ko jaanna hi chahiye. rahi baat film ki toh aaye din kisi na kisi film par ho rahe bawaal ke karan hi censor board ne iske kuch part ko kaat diya hoga. kya kare hum bhartiyo sacchai ka saamna karne se darte jo hai. hum jaante hai ki film me puri tarah sacchai dikhai jaa rahi hai lakin fir bhi hum us par rok lagane ke liye danga karte hai, hum aaina dekhne se darte hai.