Tuesday, 19 June 2007

आंध्रप्रदेश की कांग्रेस सरकार ने एक अध्यादेश जारी करते हुए कहा है कि हिंदू धार्मिक स्थल सिर्फ़ हिंदुओं के लिए हैं और वहाँ दूसरे धर्मों के प्रचार की अनुमति नहीं है.
यह अध्यादेश तुरंत लागू कर दिया गया है.
अधिकारियों का कहना है कि यह अध्यादेश हिंदुओं की भावनाओं को आहत होने से बचाने के लिए लाया गया है.

दरअसल यह अध्यादेश हिंदू धार्मिक संगठनों की उन शिकायतों के बाद लाया गया है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि ईसाई मिशन के लोग तिरुमाला मंदिर के आसपास धार्मिक प्रचार कर रहे हैं.

हालांकि ईसाई संगठनों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन एक मुसलमान क़ानूनविद ने इस अध्यादेश की निंदा करते हुए इसे असंवैधानिक बताया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अहम क़दम है और इसके दूरगामी परिणाम दिखाई देंगे.

हिंदुओं का वेटिकन तिरुमाला के आसपास के 10 हज़ार हेक्टेयर में फैले 20 हिंदू धार्मिक स्थलों को प्रभावित करेगा.

इस मंदिर में एक सामान्य दिन में 50 हज़ार लोग आते हैं और इसकी वार्षिक आय करोड़ों रुपयों में है.

इस आदेश से लगता है कि सरकार ने हिंदू धार्मिक संगठनों की उस मांग को मान लिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि तिरुमाला को 'हिंदुओं के वेटिकन का दर्जा' दे दिया जाना चाहिए.

इस अध्यादेश की घोषणा करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी ने कहा, "हालांकि किसी भी धर्म को मानना और किसी भी धर्म का प्रचार करना किसी भी नागरिक का मूलभूत अधिकार है लेकिन मंदिरों के आसपास दूसरे धर्मों के प्रचार की अनुमति नहीं दी जा सकती."

मुख्यमंत्री ने कहा है कि इस अध्यादेश के दायरे में सभी धर्मों के धार्मिक स्थल आएँगे.

इस क़ानून का उल्लंघन करने वाले को जेल और ज़ुर्माने का प्रावधान रखा गया है.

3 comments:

रवि रतलामी said...

तो, अंततः कांग्रेसी सरकार ने भी भाजपाई भगवा झंडा पहन ही लिया.

दुखद है यह!

Anonymous said...

bhai ek to ye sab dharm ko bachane ka tarika. unhe dar hai ki mandir se logo ke puja karke nikalne ke baad kahi dusre dharm ke log unka dharm na bdalwa de.
dusre taraf ye vote haasil karne ki raajniti hai.

--kamran
--www.intajar.blogspot.com

अरविंद चतुर्वेदी said...

कामरान साहब सही हैं धमॻ बचाने का ही ख़तरा है। कोई तिलक से धमॻ बचाता है तो कोई तलवार से। एक हमाम है और वहां कोई भी अपना नंगापन दिखाने में जरा भी संकोच नही करता। इतिहास का छाॼ नही हूँ फिर भी इतिहास पढ़ा है। मैने भारत की इस ज़मीन से बौद्ध धमॻ के सूयॻ को उगते पढ़ा है। जैन धमॻ की जननी भी यही भूमि रही है....यूनान की शक्ति उसकी राजनीतिक नीतियां थी। बाद में दशॻन से पहचान बनी। लेकिन इस प्रायद्वीप की पहचान ही इसका बहुरंगी चेहरा रहा है.......जहां धमॻ के ही फूल खिलते हैं। इनकी ख़ुशबूओं ने देश की सीमाओं को लाॅघा है। समुद्र की गहराई को तय किया है। और इसने पवॻत की ऊँचाई को भी छूआ है। फूलों का रंग अलग ज़रूर है। लेकिन बग़ीचा एक ही है। माली एक है। सो हवाऐं पहले भी चली थी और आज भी हैं। घबराहट की बात नही है।