Friday, 17 August 2007

साठ साल आजाद भारत के................

मेरे मोबाइल फोन पर एक संदेश आया कि आजाद भारत के 60 साल होने पर खुशियां मनाओ।
बिल्कुल यह अवसर खुशियां मनाने और लोकतंत्र के 60 वीं सालगिरह मनाने का है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत एक विकासशील देश होने के बावजूद 2020 तक अपने को विकसित बना लेने की दंभ भरता है। लेकिन आज भी भारत और इंडिया के बीच की खाई जस की तस ही बनी हुई है।

इंडिया जहां रोज सफलता की नई ऊचांई को छू रहा है वहीं भारत लगातार पिछड़ा ही जा रहा है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने डेवलपिंग इंडिया की पोल खोल कर रख दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में 83 करोड़ 60 लाख लोग रोजाना बीस रुपए कमाते हैं। इनमें ज्यादातर लोग अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़े वर्ग और मुस्लिम समुदाय से हैं। यह रिपोर्ट उन लोगों को नींद से जगाने के लिए काफी हैं जो बीपीओ के गुणगान करते नहीं थकतें। उनका तर्क है कि जो भी हो बीपीओ ने बेरोजगारी में कमी की है। भले ही बीपीओ में काम करने वाले युवाओं की संख्या केवल 1 लाख ही क्यों न हो।

वहीं दूसरी ओर एक ताजा अध्ययन में सर्व शिक्षा अभियान की धज्जी उड़ा दी है। इस अध्ययन के अनुसार भारत के दो लाख स्कूलों में पीने का पानी मयस्सर नहीं है। देश के साठ फीसदी स्कूलों में श्यामपट यानी ब्लैक बोर्ड नहीं है। सबसे चौकानें वाली जानकारी यह मिली है कि 32 हजार स्कूलों में तो एक भी छात्र नहीं है। इन रिपोर्टों को पढ़ने के बाद कोई भी समझदार इंसान विकसित भारत का सपना निकट भविष्य में पूरा होता नहीं देख सकता।

इन दिनों वाम और भाजपा केन्द्र सरकार को परमाणु करार पर घेर रहे हैं। क्यों उन्हें और मुद्दे नजर नहीं आते जिससे आम जनता का रोज का लेना देना है। क्या उन्हें लोगों की महज 20 रुपये रोजाना की कमाई की कोई चिंता नहीं है। परमाणु करार हो या न हो इससे इन गरीब लोगों की जिंदगी में कोई तबदिली नहीं आने वाली है। बच्चों को शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो रही है और बड़े-बड़े सपने दिखाने का कोई फायदा नहीं होगा..........

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