Friday, 11 December 2009
कुल आबादी का 37 प्रतिशत हिस्सा गरीब
भारत की कुल आबादी का 37 प्रतिशत हिस्सा ग़रीबी में जी रहा है।भारत सरकार की ओर से नियुक्त एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार हर तीसरा भारतीय दरिद्रता में जीवन व्यतीत कर रहा है। जी हैं ये सच है। दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु जैसे शहरों में दिखने वाला गरीब झारखण्ड, उड़ीसा और बुंदेलखंड के गरीबों से अलग है प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व अध्यक्ष सुरेश तेंदुलकर के नेतृत्व वाले विशेषज्ञ समूह का कहना है कि देश में ग़रीबों की तादाद में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इस तरह भारत की कुल आबादी का 37 प्रतिशत हिस्सा ग़रीब है।रिपोर्ट के अनुसार 41।8 प्रतिशत ग्रामीण आबादी प्रति माह केवल 447 रुपए से खाना, कपड़ा और ईंधन की ज़रूरतों को पूरा करती है। ग़रीबी के मामले में राज्य स्तर पर उड़ीसा और बिहार की स्थिति सबसे ख़राब है, वहीं नगालैंड, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में सबसे कम ग़रीब रहते हैं। विशेषज्ञ समूह का कहना है कि शहरी इलाक़ों की हालत कुछ बेहतर है, वे लोग खाना, कपड़ा और ईंधन की ज़रूरतों के लिए 579 रुपए प्रति माह ख़र्च करते हैं. उड़ीसा की आधी आबादी ग़रीब है. दूसरी ओर चरमपंथ प्रभावित जम्मू और कश्मीर सबसे अमीर राज्य है जहाँ सरकारी आँकड़े के अनुसार पाँच प्रतिशत ही लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं। दूसरी ओर चरमपंथ प्रभावित जम्मू और कश्मीर सबसे अमीर राज्य है जहाँ सरकारी आँकड़े के अनुसार पाँच प्रतिशत ही लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं। इन आंकड़ो को पढने के बाद विकास की बात झूठी लगती है।
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4 comments:
जनताको खाने को अनाज मिले या ना मिले , अनाज से शराब की ईकाया लगते चलो .
शराब की गटारे बहाते चलो , जनता को शराब की गटर में डुबोते रहो. २
कोन है छुत कोन हें अछुत , सब में पैसा ही समाया है,
सत्ताधारी और विरोधी ये सब झूठे भरम है सारे, इस झूठे भरम में जनता भरमाई हें , २
झूठे आश्वासन झूठे विकास की खाब्बों का अभास करवाते रहो .
शराब की जय जय करते रहो . २
सारे अनाज के कण कण में है , दिव्य सोमरस की मात्रा
इक वाइन है ,दूसरी हें देशी , सबकी नशा ही समाधी हें
भूके पेट नशे की समाधी लगाते रहो .
जिंदगीके सब गम मिटाते रहो
जनता को जाम पे जाम पिलाते रहो . जय हो जय हो !!!!!
द्वारा पोस्ट केलेले THANTHANPAL येथे 11:22 PM
aapne bilkul thik kaha sandeep ji, aaj humaare chaaro taraf itni gareebe hai or sarkaar ka dhyaan khel or sadko ki sajawat me laga hua hai, koi unhe samghay ki khel itna jaruri nahi jitni ki 2 waqkt ki rooti.
bahut khoob likhte rahiye.
संदीव जी.. दिल्ली शहर में भी बहुत से लोग ऐसे मिल जाएंगे, जिन्हें एक वक्त के बाद दूसरे वक्त की रोटी मयस्सर नहीं.. लेकिन जबतक कोड़ा हैं.. गरीब की फिक्र कौन करे.. उसके लिए तो नए साल के सूरज से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा..
एस लाह है कि ब्लॉग में लेख के साथ तारीख भी डालें तो बेहतर रहेगा...
achhi report.... mere blog per aapka swagat hai...
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