
महाराष्ट्र सरकार ने अपने फैसले के कहा है कि वह टैक्सी चलने का परमिट उन्ही को दिया जायेगा जो वह पिछले १५ सालों से रह रहा हो, उसे मराठी लिखना, बोलना और पढना आता हो। भारत के नक़्शे में आने वाले बम्बई नही नही, मुंबई के हमारे संविधान के विपरीत क़ानून लागू होते हैं। कोई उनकी बाहें नही मरोड़ता है। स्थानीय लोगों को रोज़गार दिलाने के लिए भारत के किसी भी राज्य में ये तरीका नही है। आप पंजाब में जाकर बिना पंजाबी के, बंगाल के बिना बंगाली के, गुजरात के बिना गुजरती के कोई भी काम कर सकते हैं। हालाँकि एक इंसान अगर कई सालों तक एक जगह रहता है तो वह की सारी चीज़ें भी सीख ही लेता है। तो भैया इसके लिए कोई कानून बनाने की क्या ज़रूरत है ?
राज भैया की चले तो वो मराठियों के विकास के लिए मुंबई को भारत से ही अलग कर दें। क्योकि अगर वो भारत के रहा तो वह भारत का संविधान लागू होगा। ये वो संविधान है जिसके एक एक शब्द का महत्व है। जो जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचलप्रदेश से गुजरात तक लागू होता है।
विदेशों में ये ज़रूर नियम है कि वहां का वीजा तभी दिया जायेगा जब वह जाने वाले व्यक्ति को वह की भाषा आती हो। लेकिन अब तो अपने देश में भी स्थानीय भाषा के बिना कोई काम नही कर सकता....
2 comments:
जगतीकारणाचा बोम्ब मारणारी अमेरिका सुद्धा आता बचावात्मक पवित्र्यात आली आणि outsourcing च्या विरोधात कायदे करत आहे mulayam lallu
ki gundagardi nahi chalegi
हालाँकि एक इंसान अगर कई सालों तक एक जगह रहता है तो वह की सारी चीज़ें भी सीख ही लेता है।
तुम आके मुझे मिलो यहापे. तुम्हे ऐसे भय्ये दिखाता हु जिनोन्हे पुरी जिन्दगी मुंबई मे बिताय़ी लेकीन अभि तक मराठी नही सिख पाये. अमिताभ बच्चन से जाकर पुछ लेना मराठी बोल सकता है क्या??
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