बचपन एक यसे माहौल मे बिता कि पता ही नही चला कि हिंदु होना यानी कि आप किसी ना किसी जाती से संबंध ज़रुर रखते है
यहां मैं आपको जाती ने समाज को कितने मजबूती के साथ जकड़ रख है कि जिसके बाद सारी आधुनिकता हवा हो जाती है
बात उन दिनों कि हैं जब मैं हाई school का छात्र था अपने एक मित्र के कहने पर मैं उसके गाँव गया था, गाँव मे वैसे भी किसी नए आदमी को देख कर सब उसके बारे में जानने को उत्सुक हो जाते हैं,
यह मेरा पहला अनुभव था जब किसी ने मेरी जति पूछी थी, सभी गाँव कुछ यसे लोग होते है जिनका काम ही दूसरो कि खबर रखना होता है, इसी बिमारी से पीड़ित एक बुजुर्ग ने मुझे कहा कि बबुआ आपन घर? इस पर मैंने अपने शहर वाले घर का पता बता दिया, लेकिन उसने फिर से मेरे पिता जी का नाम पुछा तो मैंने अपने पिता जी का नाम बता दिया, इसके बाद भी उसे संतुस्ती नही मिली और उसने अपने दिल कि बात मुझ से पूछ ही ली कि बबुआ तू कौन जात के हटा? उसके पूछने का मतलब था कि आप किस जति के है?
तब मुझे पता चल गया था कि दरअसल वोह आदमी मुझसे मेरी जति जानना चाह रह था,
मेरा एक और कड़वा अनुभव मेरे एक मित्र के घर पर हुआ, जब मैं अपने मित्र के घर पर गया तब उसकी मौसी भी आयी हुई थी जब मैं उसके घर मैं गया तो उसकी मौसी ने उसकी माँ के कानो लग्भाब फुसफुसाते हुए पुछा कि यह लड़का किस जात का है, जब उसकी माँ ने उसकी मौसी को कहा कि लड़का ब्रह्मण है तो उसकी मौसी मिस्चिंत होकर बैठ गयी,
बात मैं अपनी नही कर रह मेरे साथ यासी कई घटनाये घटीं है जिसके बाद मुझे लगा है कि सारा समाज केवल दिखावे के लिए आधुक्निकता का चोला ओढ़े रखता है असलियत यह है कि आज भी कोई लड़का या लडकी किसी दुसरी जति में शादी कि बात सोच भी नही सकते।
आगे भी मैं कोशिशी करुंगा कि समाज कि कुछ येसी ही सचयियो से आप सब को रू ब रू करता रहो..
2 comments:
blog par pehle column ke leye badhaii.
kamran
blog par pahle lekh ke liye badhai.
kamran
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