Tuesday, 15 January 2008

सम्मान मांगना अपमान से कम नहीं......


काश की कोई मुझे भी सम्मानित करता....ये आस लगाए कितने लोग ही इस दुनिया से विदा हो जाते हैं। कितने लोगों को तो मर्नोप्रांत वो सम्मान दिया जाता है जिसे अगर उनके जीते जी दिया जाता तो आज उनकी आत्मा से ज्यादा वो खुद खुश होतें लेकिन अफ़सोस ये सम्मान उनकी आत्मा को मिला।

अब हमारे राजनेताओं को ही ले लीजिये इन्हें तो सम्मानित होने का बहाना चाहिऐ, चौक हो चोरह हो इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, बस दो चार माला पहनने वाले तो होने चाहिऐ वरना कहे नेता। जब कोई माला पहनने वाला नहीं हो तो कार्यकर्ता ही लोगों की भीड़ में घुस कर फलाना जिन्दाबाद के नारे लगना शुरू कर देते हैं...

ज़माना बदल गया है अब तो मुँह खोल कर सममनित करने की इक्छा जाता रहे हैं, उन्हें भी बार बार संजय जा रह है कि सम्मान के लिए जिद ना करें वर्ण सम्मान ना मिलने पर अपमानित होंगे। हमारे राम विलास पासवान भारत रतन के लिए ने मुह्हमद का नाम सुझा कर कुछ अलग सोंचा है....वरना बीजू पटनायक, कांशी राम और कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत सम्मानित करने की सिफारिस की गयी है...जीते जी तो हमारे अटल जी और मुलायम सिंह यादव को भारत के इस सर्वोच्च सम्मान देने की पेशकश कि गयी है....वरना पिछले दो साल से तो इस सर्वोच्च सम्मान के लिए उपुक्त पात्र ही नहीं मिल है...लेकिन इस बार काफी दावेदार मैदान में है...

जब इतने सारे दिग्गज line में लगे हो तो हम जैसों को कौन पुचेगे....

अपने लिए तो बस ये शेर ही काफी है...या कह लीजिये कि अपने मन को दिलासा देने का बहाना....
ना किसी के आँख का नूर हूँ, न किसी के दिल का करार हूँ......जो किसी के काम न आ सका वो मुश्ते गुबार हूँ.....

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