Friday, 18 January 2008

किसकी है ये नानो ??


आम लोगों की कार आ गयी.....लूट मची है लूट.....मेरे एक मित्र ने कहा की दोस्त अब तो आम आदमी भी कार में चलेगा...सभी के पास कारें होंगी....मैं पूछा भैया तुम आम आदमी किसी कह रहे हो? आम आदमी तो वो है जिसे कच्चे होने पर काटा जाता है और पके होने पर चूसा जाता है...

चमकीली दुनिया के पीछे का कड़वा सच लोग भूल जाते है...शायद यही ग़लती मेरे मित्र से हुई....उसकी ग़लती नही है। दरअसल जिस प्रकार से बाज़ार ने हवा बनाया है उस वातावरण में कोई भी चकमा खा जाये...पिछले चार पांच सालों में बाज़ार ने तेज़ी के साथ करवट बदली है...इसी का नतीजा है कि हर ६ हाथ में मोबाइल है...

लेकिन आज भी देश की एक बड़ी आबादी बदहाली और आभाव की ज़िंदगी जीने को मजबूर है....मैंने अपने दोस्त से कहा की भाई देश की ७० फीसदी आबादी ही आम आदमी है..न कि दिल्ली और मुम्बई में कमाने गयी केवल ३ करोड़ की भीड़।

मैंने अपनी बात को पुख्ता करने के लिए उसे सबूत भी दिया जिसमे एक रिपोर्ट भी थी जो असंगठित क्षेत्र के उपक्रमों के लिए काम करने वाले राष्ट्रीय आयोग (एनसीईयूएस) ने पिछले साल अगस्त-सितंबर में एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी.
यह रिपोर्ट कहती है इस देश के 41 प्रतिशत लोग आमतौर पर ग़रीब हैं (क़रीब 27 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं) और 77 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो ग़रीबी की दृष्टि से संवेदनशील हैं। यानी ये वो लोग हैं जो ग़रीबी की बस सतह पर हैं। एक अरब से अधिक की आबादी में से 83।60 करोड़ लोग इस श्रेणी में आते हैं. रिपोर्ट कहती है कि भारत की आबादी का यह 77 फ़ीसदी हिस्सा यानी 83.60 करोड़ लोगों की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन आमदनी औसतन 20.3 रुपए है. सरकारी संस्था की इस रिपोर्ट के अनुसार मध्य-वर्ग यानी मिडिल-क्लास के लोगों की संख्या 19.3 करोड़ है.
यही रिपोर्ट कहती है कि भारत की आबादी का यह 77 फ़ीसदी हिस्सा यानी 83.60 करोड़ लोगों की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन आमदनी औसतन 20.3 रुपए है. ऐसे में जब आम आदमी की बात करते हैं तो किस आम आदमी की बात करते हैं?
निश्चित तौर पर उनकी तो नहीं जिनके पास रोज़गार नहीं है, पेट भर खाना नहीं है, रहने को घर नहीं है, बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, स्वास्थ्य सुविधाएँ जिनकी पहुँच में नहीं है और शिक्षा जिनकी प्राथमिकता सूची में कहीं नहीं है.
आम आदमी और उनके बहाने से भारत के उत्कर्ष की बात करने वाले लोगों के यह जानकारी उपयोगी हो सकती है कि वे देश के 20 प्रतिशत लोगों के बारे में बात कर रहे हैं और 20 प्रतिशत लोग किसी भी प्रजातंत्र में देश नहीं बनाते। जिस तरह मोबाइल, कंप्यूटर और कार और शहरों के विस्तार को भारत के विकास का पैमाना मानकर एक वर्ग ख़ुश हो रहा है वह चकित भी करता है और चिंतित भी.
जिस देश में अभी भी लोगों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध करवाना चुनौती बना हुआ हो, लोगों को इलाज के लिए मीलों-मील चलकर अस्पताल तक पहुँचना पड़ता हो और जहाँ शहरों में भी 24 घंटे अनवरत बिजली एक सपना बना हुआ हो वहाँ आम आदमी का सपना क्या हो सकता है? क्या एक लाख की कार?

1 comment:

Anonymous said...

ये कार सिर्फ स्सती है, बैठके चलाओ तो पता चले़! मिस्टर टाटा जब स्टेज पर ये कार चलाते आए तो ज्लदी से बाहर निकले फिर सांस लिया।