Monday, 1 December 2008

मुंबई से सबक

मुंबई ने पहले भी कई सबक दिए लेकिन किसी ने उसकी सुध नही ली। इस बार का सबक ज़िन्दगी भर याद रहेगा। ३ दिनों तक देश ने अपनी सांसे थाम राखी थी. टेलिविज़न पर देखने वाली हर पर की ख़बर बेचैनी को और भी बढ़ा देती थी. अभी तक वो मंज़र मेरी आखों के सामने घूम रहा है. केवल १० आतकवादियों ने पुरे देश को हिला कर रख दिया....बेगुनाहों की जान लेने वाले कुछ आतंकवादियों को ख़तम करने २ से ज़्यादा दिन लग गए. अब वक्त आ गया है की आगे येसा हमला न हो इसकी तैयारी अभी से शुरू कर देनी चाहिए. इस हमले की तुलना अमेरिका पर हुए ९/११ के हमले से की जा रही है. कहा ये भी जा रहा है की अमेरिका में इसके बाद एक भी हमले नही हुए फ़िर हम कोई साधन क्यो नही अपनाते जिससे इस प्रकार के हमलों पर लगाम लगाया जा सके. लगाम लग सकता है....बस कुछ उपाए अपनाने होंगे. हमारे देश में करोडो लोग हैं जिनके पास अपनी पहचान को साबित करने का कोई पुख्ता दस्तावेज़ नही है. कोई नही सभी नागरिको कोई एक पहचान पत्र दिया जाए जिसमे उनकी हर जानकारी दर्ज होगी...उनका नाम, जनम तिथि, जनम स्थान, ब्लड ग्रुप, लिंग, फिंगर प्रिंट.........और बहुत कुछ. इससे आतंकवाद पर काफी हद तक काबू पाया जा सकेगा... कोई इंसान पड़ोसी देश से समुद्र के रस्ते आराम से हमारे देश में आता है और एक ५ सितारा होटल सहित कई जगहों पर धमाके करता है. उस आतंकवादी को किसी ने नही रोका ? क्या ये सम्भव है? क्या हमारे खुफिया विभाग, नेवी, पुलिस और सेना सो रही थी? इस बार मुंबई धमाकों के गूंज शांत नही होने वाली है. अब बहुत हुआ....अब किसी बेकसूर की जान किसी नेता के कारन नही जायेगी......

3 comments:

राजीव करूणानिधि said...

आप ने जो भी तरीके बताये हैं, वो सही तो है पर उसे लागु करने और बनाने में सालो लग जाये, शायद तब भी पूरा ना हो सके, सबसे जरूरी है अपनी सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करना. सुरक्षा पर राजनीतिक प्रभाव कम करना और जिम्मेदार अधिकारियों को कानून लागू करने का पूरा अधिकार देना, शायद हम इससे बहुत हद तक ऐसी समस्याओं से निजात प् सकेंगे.

अरविंद चतुर्वेदी said...

कोई नेता ज़िम्मेदार है नही मुझे नही मालूम लेकिन हमारी सेना सोती नही है ये मुझे मालूम है। ख़ुफ़िया विभाग की रिर्पो़ट सभी के पास थी। काम ठीक से नही किया गया नाकारा तंत्र इस रिर्पोट को निगल गया। रही बात बर्दास्त की तो हम हर बार कुछ ऐसा ही सोचते है करते भी हैं.....लेकिन कुछ दिनों बाद सबकी हवा निकल जाती है। आशान्वित मै भी हूँ बस इसी आशा के साथ जी रहा हूँ।

धीरेन्द्र पाण्डेय said...

jab jab aatanki hamla hota hai
tab tab neta sota hai