Monday 27 April, 2009

अश्लीलता पेंटिग्स में नहीं आपकी आँखों में है....

मशहूर चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन के कुछ चित्रों को लेकर पिछले एक-डेढ़ दशक से एक अभियान सा चलाया जा रहा है। ज़ाहिर है इस अभियान के पीछे वे हिंदुत्ववादी शक्तियाँ हैं जिनके दिल और दिमाग़ों में धर्मोन्माद का ज़हर भरा है और जो नफ़रत की राजनीति करती हैं। इस अभियान के तहत हुसैन की कुछ पेंटिग्स को आधार बनाकर ये प्रचार किया जा रहा है कि उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं के निर्वस्त्र/ अर्ध निर्वस्त्र चित्र बनाकर हिंदुओं का अपमान किया है। इस सिलसिले में देश के कई स्थानों में उनके ख़िलाफ़ मुकद्दमें भी दायर किए गए, जिन्हें बाद में अदालत ने खारिज़ कर दिया। लेकिन कट्टरपंथियों ने अपना काम जारी रखा है और वे इंटरनेट का इस्तेमाल करके ऐसे कथित चित्र लोगों को भेज रहे हैं। करीब साल भर पहले ऐसे कुछ चित्र मेरे पास भी भेजे गए थे। इनमें एक लक्ष्मी, एक सरस्वती, एक दुर्गा, एक पार्वती, एक भारतमाता का है, जो या तो नर्वस्त्र हैं या अर्धनिर्वस्त्र। इन्हें मैंने बिना देखे ही कूड़े के हवाले कर दिया था, क्योंकि मुझे पता था कि उनके पीछे भेजने वाले की मंशा क्या है। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर इससे विचलित हो गए और बगैर छानबीन में जुट गए। उन्होंने ये चित्र हुसैन पर पूरी किताब लिखने वाले जानकार के। बिक्रम सिंह को भेजकर पूछताछ की। बिक्रम सिंह ने अपने नियमित स्तंभ बिंब-प्रतिबिंब (जनसत्ता) के ज़रिए जवाब दिया मगर राजकिशोर इससे संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने एक जवाबी लेख लिख डाला। बिक्रम सिंह ने अब फिर से इस जवाबी लेख का जवाब दिया है। पेश है उसका सार-संक्षेप-1- मेरे लेख के बारे में राजकिशोरजी ने कहा है कि मेरे लेख से पता चलता है कि मेरी भावना मेरी बुद्धि र हावी हो गई है। उनका सवाल ये है कि हुसैन ने ऐसे चित्र हिंदू देवी-देवताओं का अनादर करने के लिए बनाए। साथ ही ये भी कि क्या इनसे हिंदुओं की भावनाओं को चोट नहीं पहुँचती। पहली बात ये है कि कला के मामले में भावनाओं को कला से अलग नहीं किया जा सकता। मैंने पिछले लेख में कहा था कि हिंदू कला में देवी-देवताओं को निर्वस्त्र दिखाने की एक लंबी परंपरा हैय़ यहाँ यह साफ कर दूं कि हिंदू संस्कृति में हम स्त्रियों की नग्नता से परेशान होते हैं। पुरुष तो कपड़े उतारकर नागा साधुओं की तरह कहूं भी जा सकता है। इसलिए जब हुसैन कुछ हिंदू देवियों या पूज्यजनों को निर्वस्त्र या अर्धनग्न दिखाते हैं तो वे एक परंपरा का अनुगमन कर रहे हैं। इसके विपरीत इस्लाम में ऐसी कोई परंपरा नहीं और इसलिए इस्लाम के पूज्यजनों को नग्न दिखाना किसी को भी ठीक नहीं लगता। जैन धर्म में तीर्थंकरों को और स्वयं महावीर को लिंग समेत दिखाने की परंपरा है। इसे कोई अश्लील या आपत्तिजनक नहीं मानता। उन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं अश्लील तब बनेंगी अगर उन्हें कृष्ण या गाँधी की तरह धोती पहना दी जाएं। इसलिए नग्नता पवित्रता हो सकती है, जैसा कि हुसैन ने देवी-देवाताओं की निर्वस्त्रता के संदर्भ में कहा है। इसका यह मतलब नहीं कि निर्वस्त्रता या नग्नता का प्रयोग किसी व्यक्ति का उपहास करने के लिए या उसे नीचा दिखाने के लिए नहीं किया जा सकता। हुसेन के एक चित्र में इसीलिए हिटलर को नग्न दिखाया गया है। समझ में नहीं आता कि राजकिशोर जी को इन दोनों बातों में कौन सा अंतर्विरोध नज़र आता है, जिसको लेकर वे इतने परेशान हैं।2- एक चित्र हिटलर वाला है जिसमें गाँधी के सर की जगह चक्र लगा है। अगर आपका विवेक आपकी भावनाओं को ऐसा प्रशिक्षण देने में सफल रहा है कि आप एक भारतीय मुसलमान कलाकार की कृति को शक की नज़र से न देखें तो साफ है कि यह चक्र नैतिक आलोक का प्रतीक है। लेकिन इस चित्र के नीचे ई-मेल भेजने वाले खुराफ़ाती हुजूर लिखते हैं कि इस तस्वीर में गाँधीजी का सिर कलम कर दिया गया है। यह जानबूझकर हिंदुओं की भावनाओं को उकसाने की कोशिश नहीं तो क्या है। 3- राजकिशोरजी कहते हैं कि चौदह चित्रों से यह बहुत सफाई से लक्षित होता है कि सभी हिंदू चरित्रों को नग्न दिखाया गया है। राजकिशोरजी के इस कथन से एक बात और लक्षित होती है कि ई-मेल वाले शैतान का तीर ठीक निशाने पर बैठा है। जानबूझकर केवल निर्वस्त्र या अर्ध निर्वस्त्र अवस्था में देवियों के चित्र इकट्ठा करके वह लोगों को यह समझाने में सफल हो गया है कि हुसेन ने हमेशा हिंदू-देवी देवताओं का नग्न चित्रण किया है। राजकिशोर जी से आग्रह है कि ने मेरी पुस्तक का एक अध्याय “आई एम ए बिलीवर” (मैं आस्तिक हूँ) देख लें। उन्हें इसमें ऐसे कई चित्र मिल जाएंगे, खास तौर से कृष्ण के साथ राधा के जिनमें कोई नग्नता नहीं है। ये सही है कि हुसेन पाँच दफ़ा नमाज पढ़ने वाले मुसलमान हैं, लेकिन वे सब धर्मों की इज्ज़त करते हैं और इसीलिए उन्होंने संसार के सभी बड़े धर्मों को लेकर चित्र बनाए हैं। अगर इन बातों से राजकिशोर जी को उनकी सहिष्णुता का प्रमाण नहीं मिलता तो हुसेन को क्या करना चाहिए?4- राजकिशोरजी का सुझाव है कि हुसेन अपने विवादास्पद चित्रों को विनम्रतापूर्वक वापस ले लें, जिनसे सांप्रदायिकता को ताक़त मिल रही है। उनका ये सुझाव बेहद ख़तरनाक है, क्योंकि यह रास्ता सीधा बाबरी मस्जिद के विध्वंस की तरफ जाता है। तर्क सीधा है-क्योंकि हिंदू कट्टरवादियों को बाबरी मस्जिद बर्दाश्त नहीं थी, इसलिए उसे हटा देना ज़रूरी था। आज की स्थिति में इन चित्रों को वापस लेने से सांप्रदायिक शक्तियों को और बल मिलेगा। न जाने कितनी किताबों को जलाना पड़ेगा, कितनी फिल्मों पर प्रतिबंध लगेगा। “परजानिया” जैसी फिल्म जो गुजरात में दिखाई नहीं जा सकी, भारत के किसी हिस्से में दिखाई नहीं जा सकेगी। ज़रूरी है कि हम पहचानें कि जो लोग ऐसे विवाद उठाते हैं उनकी असली मंशा क्या है और उसकी मुखाल्फत करें, न कि उसके सामने झुकें। ई-मेल में दिखाए गए चित्र(कम से कम जिन्हें मैं जानता हूँ) बीस-तीस साल पुराने हैं। उस समय तो इन चित्रों को लेकर विवाद खड़ा नहीं हुआ था। आज ये विवाद क्यों खड़ा किया जा रहा है।5-अंत में वह सवाल जिसे राजकिशोरजी ने बार-बार उठाया है, ये चित्र हुसेन के हैं या नहीं। हुसेन पर पुस्तक लिखने के दौरान मैंने उनके करीब 2000 चित्र देखे होंगे। इस प्रक्रिया में मैंने पंद्रह में से सात चित्र अवश्य देखे थे, इसलिए मैं कह सकता हूँ कि ये चित्र हुसेन के ही हैं। बाकी के चित्रों के बारे में केवल इंटरनेट पर देख कर यह कहना कि ये चित्र हुसेन के हैं या नहीं, किसी भी ज़िम्मेदार व्यक्ति के लिए ग़लत होगा। एक पेंटिंग की प्रामाणिकता स्थापित करने के लिए साधारणतया मूल पेंटिंग देखना आवश्यक होता है।
(साभार : देशकाल)

2 comments:

preeti pandey said...

sandeep ji aapne is blog se yeh baat saaf kar di ki hum jo dekhna chahte hai hume wahi dikhai deta hai. yadi humara najariya sahi hai toh hume buri se buri cheej me bhi koi na koi acchai hi dikhai degi. rahi baat in paintings ki toh mera manna hai ki bhagwaan ki nagan tasviro ko dikhana se koi sanskriti ka apmaan nahi hota, hume toh bus ek bahaana chahiye hota hai saamne wale ke kaam par unglai uthaane ka, ho sakta hai painter ne inhe banaate samay galat najariya na rakha ho or dekhne walo ne ussi galat najariye se in tasviro ko dekha hai. yadi hindi muslim ke naam par in tasviro me dikhai sacchai ko jhuthlaya ja raha hai toh khajuraao ke mandir me dikhai paiting kis dharm ka pratik hai. jab ek hindu mandir me sansaar ka pahla or akhiri sach ka is tarah pradarshan ho raha hai ki wh ek tourist place tak ban gaya hai toh in paitings me kisi koi kaise appati ho sakti hai.

sandeep dwivedi said...

aapne bilkul sahi kaha hai....