Tuesday, 24 November 2009
हिट होने का पैमाना है अशलील गीत
हिन्दी गानों की बात की जाये तो सबसे अधिक लोग सदाबहार गीतों को ही पसंद करते हैं। कितने गाने आये और चले गये लेकिन सदाबहार गीतों का नशा आज भी पूरे ‘शबाब पर है। संगीतप्रेमी आज भी मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, महेन्द्र कपूर जैसे गायकों के गीत पूरे चाव के साथ सुनते हैं। लेकिन कुछ साल पहले आई कई फिल्मों में हिन्दी गानों को हिट बनाने के लिए उनमें कुछ ऐसे ‘शब्द डाले गये जिसने उस गाने पर अशलीलता ठप्पा लगा दिया। सन् 1993 में आई फिल्म ‘खलनायक’ का ‘चोली के पीछे क्या है, चुनरी के नीचे क्या है’ वाला गीत, जिसे गुनगुनाने में भी आज ‘शर्म आ जाती है। उस वक्त सभी के जुबान पर छा गई थी। इसके बाद आई फिल्म ‘दलाल’ का गीत ‘चढ़ गया उपर रे, अटरिया पे लोटन कबूतर रे’ काफी म’शहूर हुआ, लेकिन इसकी वजह कुछ और थी। इस गीत में गीतकार ने दोहरे अर्थ वाले संवाद लिखे थे। इसका ही असर था कि उस दौर में बहुत जल्दी ही तमाम पान दुकानों और बसों में ये गीत सुनने को मिलने लगे। फिल्म ‘करन अर्जुन ’ का गीत ‘लांबा लांबा घूंघट काहे को कर डाला, क्या कर आई कहीं मुंह काला रे’ को सुनने वालों की कई सालों तक नहीं थी। फिल्म सबसे बड़ा खिलाड़ी के गीत ‘मांग मेरी भरो, चलो प्यार मुझे करो, अंग से अंग मिला के, प्रेम सुधा बरसा के, दासी तेरी प्यासी रही कितने जनम’ की मादकता सुनकर ही महसुस की जा सकती है। कुछ सालों पहले आई फिल्म ‘मर्डर ’ के गीत ‘भींगे होंठ तेरे, प्यासा मन मेरा, लगे अब्र सा ये तन तेरा, कभी कोई रात मेरे साथ गुजार, सुबह तक करूं प्यार’, को आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं। हिन्दी फिल्मों में होली हो, उसमें द्विअर्थी संवाद न हो तो कहना ही क्या। होली के गीत तो पहले से ही अशलीलता की चाशनी में डुबो कर पेश किया जाता रहा है। फिल्म ‘डर’ का गीत ‘अंग से अंग लगाना, सजन हमे ऐसे रंग लगाना’ और फिल्म ‘सौतन’ का ‘मेरी पहले ही तंग थी चोली, उपर आ गई बैरन होली, जुल्म तूने कर डाला, प्यार में रंग डाला’ जैसी गीतों ने होली की मादकता को तो महसुस करा दिया लेकिन उसे हिट बनाने में कहीं न कहीं अशलीलता ने अपना कमाल दिखा ही दिया। फिल्म ‘खुद्दार’ का ‘सेक्सी सेक्सी मुझे लोग बोले, हाय सेक्सी हैलो सेक्सी क्यों बोले’, के बोल को बाद में बदल कर ‘बेबी बेबी मुझे लोग बोले, हाय बेबी हैलो बेबी क्यों बोले’ करना पड़ा। सनम बेवफा फिल्म का गीत ‘अंगूर का दाना हूं, सुई न सुभो देना’ जैसी गीतों ने अशलीलता की हद पार कर दी। फिल्म ‘राजा बाबू’ का गीत ‘सरकाये लेयो खटिया के जाड़ा, जाड़े में बलमा प्यारा लागे’ हो या फिल्म ‘लम्हे’ का गीत ‘मोरनी बागामा बोले आधी रात मा’। इन सभी गीतों में एक ही बात समान है कि इनके बोल अशलील हैं। गीतों के बोल को तोड़ मरोड़ कर पेश करने की कला को ही सफलता की सीढ़ी मान ली गयी है। हिन्दी शब्दों का सही प्रयोग कर अश लीलता से बचा जा सकता है। लेकिन गीतकार दर्शक वर्ग पर इतने मेहरबान हो जाते हैं कि वे कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग कर देते हैं, जिससे गाना अशलील बनने से बच नहीं पाता है। हिन्दी फिल्मों के गीतों के बोल और उसे फिल्माने का तरीका इतना अशलील होता है कि पूरा गीत ही अशलील बन जाता है। फिल्मों में अशलीलता को पेश करने के कई तर्क दिए जाते हैं, लेकिन गीत और संगीत को मशहूर बनाने के लिए किसी भी कीमत पर उससे खिलवाड़ करने का हक किसी को नहीं है।
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