Friday, 21 March 2014

नाम में क्या रखा है?

जी है नाम में क्या रखा, आदमी की पहचान उसके काम से होती है नाम से नहीं. ऐसा कहते कई लोग आपको मिल जायेगे जो ये बताना चाहते हैं की वो किसी जाति या मजहब में विश्वास नहीं करते. वो तो सिर्फ और सिर्फ मानवता में विश्वास करते हैं. कितने महान विचार हैं. लेकिन क्या सच में ऐसा है. बिलकुल नहीं. हम सभी के नाम एक खास जाति या मजहब को महिमामंडित करते हैं. आप कहेंगे कैसे तो इसकी कुछ बानगी नीचे दे रहा हूँ.

राम कुमार, श्याम सिंह, मनमोहन कुमार, सदा शिव, इत्यादि इत्यादि 

रहमान, सुलेमान, काशिफ, अब्दुल्लाह इत्यादि इत्यादि

अलबर्ट, मिखेल, इत्यादि इत्यादि 

नाम में ही आपको पहचान मिल जाएगी. इनके नाम से इनके मजहब का साफ साफ़ पता चलता है इसके बाद शुरू होती है जाति के लिए उपनाम लगाने की बारी. 

इसकी जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं की आज के पढ़े लिखे युवा भी विदेशों में पढने के बावजूद अपनी रुढ़िवादी मानसिकता से बाहर नहीं आ पाते है और इस मानसिकता को छुपा कर अपने आधुनिक होने का ढोंग करते कहते हैं की नाम में क्या रखा है?

मैंने ये लेख किसी के सोच को ठेस पहुचने के लिए नहीं लिखी और ये मेरे बेहद निजी विचार हैं.






Monday, 28 October 2013

अति सर्वत वर्ज्यते


अगर आप किसी खास धर्म, जाति या उपजाति से आते हैं और बात उसके अनुसार नहीं करते तो आपको शक की निगाह से देखा जाता है. उदाहरण स्वरुप मान लीजिये आप हिन्दू जाति से उच्च वर्ग से आते हैं, तो आपको एक खास मानसिक स्थिति में होना ही होगा. जैसे 
आप हिन्दू होने से सभी कर्मकांड करेंगे
आप उन्हीं धकियानुसी परम्पराओं का पालन करेंगे
आप मुस्लिम से किसी न किसी प्रकार का नफरत करेंगे. 
आप हर बात में अपने धर्म और जाति को सर्वश्रेष्ठ बताएँगे.
कुल मिला कर आप लकीर से फ़क़ीर ही रहेंगे.

इसके ठीक उलट अगर आप मुस्लिमों का ज़िक्र करेंगे तो आपको शक की निगाह से देखा जायेगा और आपका हिंसक विरोध इसलिए नहीं किया जा सकता क्यों की आपका जन्म हिन्दू में हुआ है. अगर किसी व्यक्ति का जन्म मुस्लिम में हुआ है तो इसमें उसकी क्या गलती है, मान लीजिये की हिन्दू में भी अगर किसी छोटी जाति में हुया है तो इसमें भी उसकी क्या गलती है. आपका जन्म हिन्दू जाति के किसी उच्च वर्ग में हुआ है तो उसमे आपका क्या योगदान है?

पहले मैं ऐसा सोचता था की ये सोच छोटे शहरों की है लेकिन दिल्ली, मुंबई और बड़े महानगरों में भी ऐसी ही मानसिकता से लोग हैं, यही नहीं विदेश भी इनसे अछूता नहीं है. रहेंगे विदेश में लेकिन लड़की अपनी ही जाति की चाहिए. मुझे तो तब ताज्जुब हुआ जब विदेश से २ साल की पढाई करके एक लड़की ने कहा की मुस्लिम बहुत गंदे और बुरे होते हैं. तो मैंने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन मैं असफल रहा क्योंकि उसके दिमाग में नफ़रत के बीज तो बचपन में ही दाल दिए गए थे. 

कट्टरता किसी भी धर्म का क्यों न हो मैं उसके सख्त खिलाफ हूँ. मैं न तो हिन्दू कट्टरता का समर्थक हूँ और न ही मुस्लिम, सिख, जैन, की कट्टरता का. हम हर बात में टेक्नोलॉजी और तरककी की बात करते हैं थकते लेकिन इस खास मुद्दे पर आकर हमारी मानसिकता बाबा आदम ज़माने में क्यों पहुच जाती है?

ये विषय ऐसे हैं जिस पर कोई सार्वजनिक रूप से बहस नहीं करना चाहता या यूँ कहें की बचते रहना ही चाहता है. फेस बुक पर बड़े बड़े विद्वान् हैं इसलिए मैंने अपने ब्लॉग पर ये बातें लिखी हैं. ऐसी बहुत सारी बातें है जिसे मैं बताना चाहता हूँ.


Saturday, 14 July 2012

बाल ठाकरे ने बदली अपनी सोच

बाला साहेब ठाकरे ताउम्र मुसलमानों का घोर विरोध करते रहे....मुस्लिम विरोध की सियासत करते हुए महराष्ट्र में अपनी सियासी ज़मीन मज़बूत की.....उसी ठाकरे की पोती नेता ने नेहा ने एक मुस्लिम लड़के से शादी कर ली....इसके लिए उसने हिंदू धर्म को छोड़कर मुसलमान भी हो गई....ख़बर बेशक़ चौंकाने वाली हो....लेकिन सोलहों आने सच है....हैरानी इस बात की है कि मुस्लिमों के ख़ून के प्यासे होने का दावा करने वाले बाला ठाकरे भी इस शादी में मौजूद थे....अब ये पता नहीं कि वो कलेजे पर पत्थर रखकर आए थे या फिर पोती की खुशी के लिए मज़हब भूला बैठे थे.....वो अपने साथ पूरे परिवार को लेकर शादी के मंडप में पहुंचे....
बाल ठाकरे के तीन बेटे हैं.....बिंदुमाधव ठाकरे, जयदेव ठाकरे और उद्धव ठाकरे...बिंदुमाधव सबसे बड़े बेटे थे...उनका बहुत पहले देहांत हो गया था....उनकी बेटी नेहा का दिल गुजरात के डॉक्टर मोहम्मद नबी हन्नान पर आ गया था.....नबी के पिता बिंदुमाधव के गहरे दोस्त भी थे...इनदिनों बाल ठाकरे के बाग़ी भतीजे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे से दोस्ती निभा रहे हैं....दोनों अरसे से चुपके-चुपके ‘दिलजोली’ कर रहे थे....ख़बरों के मुताबिक़, अपने दादा की नीति को देखते हुए दोनों सामाजीक तौर पर ब्याह रचाने से कतरा रहे थे...लेकिन दिल पर ज़ोर नहीं चल रहा था....दोनों ने लगभग तीन महीने पहले कोर्ट में रजिस्टर्ड शादी कर ली....इस शादी की ख़बर जब ठाकरे परिवार को हुई तो हाथों से तोते उड़ गए....लेकिन उनके पास ‘मुस्लिम जमाई राजा’ को अपनाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था....लिहाज़ा इस शादी को मंज़ूरी दे दी...
परिवार ने फैसला किया कि ग्रैंड रिसेप्शन देकर इस शादी को सामाजिक मंज़ूरी दे दी जाए... मुंबई के मशहूर होटलों में से एक होटल ताज लैंड्स एंड में शानदार डिनर दिया गया....इस रिस्पेशन में ठाकरे परिवार से जुड़ी कई हस्तियां मौजूद थीं.....ख़ुद बाल ठाकरे, उद्धव ठाकरे और उनकी पत्नी और बच्चों के अलावा राज ठाकरे भी पूरे परिवार के साथ रिसेप्शन में आए....ठाकरे साहेब एक बहुत बड़े गुलदस्ते के साथ पहुंचे......इस शादी को लेकर तरह तरह की ख़बरें आ रही हैं...ठाकरे घराने से जुड़े लोग दावा कर रहे हैं कि इस शादी के लिए नबी ने अपना धर्म बदल लिया है....जबकि नबी घराने के लोग दावा कर रहे हैं नेहा ने धर्म बदल लिया है...लेकिन दोनों ही ख़बरों की पुष्टि नहीं हो पाई है.....
ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी ने प्रेम विवाह कर ठाकरे के पिता केशव सीताराम ठाकरे उर्फ प्रबोधनकार ठाकरे का सपना सच कर दिखाया....ठाकरे भले ही ताउम्र नफरत फैलाने की सियासत करते हों और मुस्लिमों के ख़िलाफ ज़हर उगलकर मराठी अस्मिता का सवाल उटाकर अपनी सियासी मज़बूत करने में सफल हो गए हों....लेकिन उनके पिता ने ताउम्र में प्रेम विवाह का समर्थन किया.....बाला साहेब ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे अपने समय के बहुत बड़े समाज सुधारक थे....वो महात्मा फूले के विचारों से प्रभावित थे... सत्यशोधक आंदोलन के अगुवा रहे प्रबोधनकार ने बाल विवाह, दहेज, छुआछूत, जातिवाद जैसी घोर सामाजिक कुरूतियों को मिटाने में प्रमुख योगदान दिया। उस जमाने में शादी से पहले प्रेम करने को व्यभिचार समझा जाता था...लेकिन प्रबोधनकार ने समाज और धर्म के ठेकेदारों को चुनौती देते हुए अनेक प्रेमी जोडों की शादियां कराईं....

प्रबोधनकार ठाकरे एक पत्रकार, साहित्यकार, कार्टूनिस्ट औऱ फिल्मी कलाकार भी थे.. केवल चौंतीस साल की उम्र में भाषण कला पर मराठी में किताब लिख दी थी...उस समय इस विषय पर किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गई पहली किताब थी....प्रबोधनकार ठाकरे ने कुछ मराठी फिल्मों में भी काम किया था... उनकी प्रतिभा को देखते हुए छत्रपति शाहूजी महाराज ने उनके सामने नौकरी का प्रस्ताव रखा, लेकिन वैचारिक मतभेद के कारण प्रबोधनकार ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया था... वो एक पाक्षिक पत्रिका प्रकाशित करते थे जिसमें वे प्रबोधनकार के नाम से लिखते थे इसलिए उन्हें प्रबोधनकार ठाकरे के नाम से भी जाना जाता है.

जबकि अपने पिता के कृतित्व के विपरीत बाला साहेब ठाकरे मराठी अस्मिता के नाम पर क्षेत्रियतावाद और उग्र हिन्दू-राष्ट्रवाद की राजनीति करते है...इसके तहत उत्तर भारतीयों ख़ासतौर पर बिहारियों को बार-बार निशाना बनाया जाता है....90 के दशक में मुंबई में हिन्दू-मुस्लिम दंगो के पीछे शिवसेना की भूमिका जगज़ाहिर है...ये शिवसेना ही है, जो वेलनटाइन्स डे पर प्रेम करनेवालों को पकड़कर पीटते हैं....और इसे हिंदू सभ्यता और संस्कृति के ख़िलाफ़ बताते हैं....कुछ साल पहले सांगली में शिवसेना कार्यकर्ताओं ने प्यार करने वालों को पकड़ कर गधे से शादी तक करवा दी थी...

बहरहाल, नेहा ने शादी कर ये साबित कर दिया कि उनकी रग़ों में उनके परदादा केशव सीताराम ठाकरे का ख़ून बहता है....जिसनें सारी ज़िंदगी प्रेम विवाह करने वालों के समर्थन में बिता दी.....उन्होने अपने दादा जी की नीति को दूर से ही सलाम कर दिया....शायद उन्होने परिवार को बेहद क़रीब से देखने के बाद ये फैसला किया होगा....पिता की मौत के बाद चाचा जयदेव और चाची स्मिता ठाकरे का झगड़ा और तलाक़ होते देखा....चाचा उद्धव और राज ठाकरे का झगड़ा देखा.....घर में अपने परदादा के क़िस्से सुने होंगे...इसलिए भी मज़हब की दीवार तोड़कर शादी करने में अचड़न नहीं आई होगी...

साभार — http://hinditvmedia.blogspot.in/?expref=next-blog

Friday, 13 July 2012

महिलाओं पर ज्यादती

गुवाहाटी के जीएस रोड पर 15 से 20 लड़कों ने एक लड़की से करीब आधे घंटे तक छेड़छाड़ की और उसके कपड़े फाड़ डाले। लड़की सड़क पर मदद की गुहार लगाती रही लेकिन उसकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। लड़की मिन्नतें करते हुए कहती रही कि मुझे घर जाने दो, तुम्हारी भी बहनें हैं, लेकिन लड़कों ने उसे नहीं बख्शा। कल घटी इस शर्मनाक घटना में पुलिस ने 3 दिन बाद तब कार्रवाई की, जब इस घटना का विडियो यूट्यूब पर अपलोड कर दिया गया। पुलिस ने 4 लड़कों को गिरफ्तार कर लिया है और 11 लड़कों की पहचान कर ली है। 11वीं में पढ़ने वाली लड़की एक पब में अपने दोस्त की बर्थडे पार्टी मनाकर रात में करीब साढ़े नौ बजे लौट रही थी। सड़क पर लड़कों ने उससे छेड़छाड़ शुरू कर दी। लड़की ने विरोध किया तो लड़के उसके बाल नोचने लगे और कपड़े फाड़ने लगे। लड़कों ने उसके साथ करीब आधे घंटे तक बदतमीजी की लेकिन उस लड़की को किसी ने नहीं बचाया। काफी देर बाद पुलिस ने लड़की को उन लड़कों से छुड़ाया। हालांकि पुलिस ने इस पर एफआईआर 3 दिन बाद दर्ज करके कार्रवाई शुरू की। पुलिस 4 लड़कों को गिरफ्तार कर चुकी है।

वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के बागपत के असारा गांव की पंचायत को यही लगता है. इसलिए पंचायत ने महिलाओं के बाजार जाने पर पाबंदी लगा दी गई है. यही नहीं गांव में प्रेम विवाह किया एक भी जोड़ा नहीं रहेगा. जिस राज्य की लड़िकयां ओलंपिक में देश का सिर गर्व से ऊंचा करने गई हैं वहीं के एक गांव की महिलाएं अब उगता सूरज भी नहीं देख पाने को मजबूर हैं. आसरा गांव में कई गांवों की खाप पंचायतों ने मिलकर ये पाबंदी लगाई है. पंचायत को लगता है कि लड़कियों के बाजार निकलने से छेड़खानी की घटनाएं होंगी इसलिए मनचलों पर लगाम लगाने की बजाय महिलाओं को ही कैदखाने में डाल दिया गया. खाप के अजीबोगरीब फैसले यहीं नहीं रुके हैं. उन्होंने गांव से प्रेमविवाह करने वाले जोड़ों को बाहर फेंकने का फैसला कर लिया है. पंचायत के बेतुके फरमानों में लड़कों को सड़क पर मोबाइल का इयरफोन नहीं लगाने को कहा गया है. अगर गांव में कोई इनकी बात नहीं मानेगा तो इन्हें पहले समझाया जाएगा और फिर भी नहीं मानें तो पंचायत फैसला करेगी. अब पुलिस नींद से जागी है और पता लगाने की बात कह रही है. खाप के बेतुके फरमान नए नहीं हैं लेकिन सवाल ये है कि कानून से ऊपर जाकर दिए जा रहे फैसलों पर रोक आखिर कौन लगाएगा. 

आखिर क्या हो गया है इस देश के कानून को हर जगह कानून को ताक पर रख कर कुछ लफ्फंगे किस्म के लोग कानून की धज्जियां उड़ाते रहे हैं। कई जांच आयोग के बाद भी इसका नतीजा कुछ नहीं ​निकलता। ऐसी घटना आये दिन दिल्ली, मुंबई, पुणे या लखनउ, बागपत जैसे जगहों पर होती रहती हैं। लेकिन हमारा समाज ऐसी घटनाओं पर हमेशा पुरूषों का ही पक्ष लेता है। यहां तक कि महिलाएं भी महिलाओं का पक्ष नहीं लेती। उन पर पुरूषवादी मानसिकता सवार है, जिससे वे भी इस प्रकार की घटनाओं का जायजा ठहराती हैं। जब तक इस देश में महिलाएं अपने उपर होने वाली ज्यादतियों को सहती रहेंगी ऐसी घटनाएं नहीं रूकेंगी। अगर सचमुच ऐसी घटनाओं को रोकना है तो महिलाओं को ही आगे आकर हिंसात्मक तरीका अपनाना होगा। मैं महिलाओं को कानून हाथ में लेने के लिए प्रेरित नहीं कर रहा। मेरा कहना बस इतना है कि जब पुरूष अपने हाथ में कानून ले सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं। 

Tuesday, 5 June 2012

क्या कभी सत्य की जीत होगी?

 
'सत्यमेव जयते' एक धारावाहिक है। जिसमें ऐसे ज्वलंत मुद्दों को उठाया जाता है जिस पर समाज की चुप्पी है। धावाहिक के प्रस्तोता आमिर खां की कोशिश है कि ऐसे मुद्दों पर लोगों की नजर जाये। लेकिन क्या आपको लगता है कि इस धारावाहिक में दिखाये गये किसी भी बात से लोग अनजान हैं? नहीं बिल्कुल नहीं। ये ऐसे मुद्दें हैं जिनकी चर्चा रोज़ाना अखबारों, गली मुहल्लों या घरों में होती रहती है। लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकलता। 
सही क्या है और गलत क्या है? इसका फैसला समाज के ठेकेदार ही करते हैं। अब तक सत्यमेव जयते में कई ऐसे गंभीर मुद्दों को उठाया गया है जो हमारे समाज के नासूर हैं। दहेज, भ्रूण हत्या, बाल यौन शोषण, प्रेम विवाह, डाक्टरी का पेशा इत्यादि ऐसे विषय हैं जिनकी निंदा तो सभी करते हैं लेकिन इसे खत्म करने के लिए कोई आगे नहीं आता। 
सत्य किसी को स्वीकार नहीं है। सत्य को जानते सभी हैं लेकिन उसका सामना कोई नहीं करना चाहता। समाजिक बुराईयों के खिलाफ लड़ाई के लिए केवल धारावाहिक या फिल्मों से कुछ नहीं होगा। दर्शक कुछ पलों के लिए भावना में आकर तालियां बजा कर उत्साहित हो सकते हैं लेकिन इसका प्रभाव बहुत कम होता है। जरूरत है कि हमारे आने वाली पीढ़ी को ऐसे संस्कार दिए जाये जिससे उनमें ऐसी समाजिक बुराईयों के लिए कोई जगह न हो पाये। 
इसमें कोई शक नहीं कि 'सत्यमेव जयते' कार्यक्रम ने लोगों के दिल पर चोट की है। लेकिन बात कितनी बन पाती है इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। आमिर खान के शो 'सत्यमेव जयते' के हर एपिसोड का दर्शक बेसब्री से इंतजार करते हैं| हर कोई यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि आमिर अपने शो में कौन सा गंभीर सामाजिक मुद्दा उठाने वाले हैं|
पहले एपिसोड में कन्या भ्रूण हत्या, दूसरे में बाल यौन शोषण, तीसरे में दहेज़ प्रथा, चौथे एपिसोड में देश की स्वास्थ्य सेवा की बिगड़ती हालत के बाद पांचवें एपिसोड में भी आमिर ने बेहद गंभीर मुद्दे देश में तेजी से बढ़ते ऑनर किलिंग जैसे अपराध को चुना है| 
मीडिया की थोड़ी समझ रखने के कारण मैं यह कह सकता हॅूं कि लोग टीवी या सिनेमा केवल और केवल मनोरंजन के लिए देखते हैं। समाजिक शिक्षा के लिए वे अपने परिवार और समाज की सोच को ही अपनाते हैं। ऐसे में यह कहना बहुत कठिन है कि 'सत्यमेव जयते' की सामाजिक​ शिक्षा का असर लोगों की मानसिकता और सोच पर कितना होता है।  

Friday, 23 September 2011

इतने गुस्से में क्यों हो भाई.....

राष्ट्रीय राजमार्ग आठ स्थित खेडकीदौला टोल टैक्स प्लाजा पर २३ सितम्बर की रात 12 बजे टोल भुगतान को लेकर बोलरो चालक ने टोलकर्मी को गोली मार दी। सूचना पर पहुंची पुलिस ने घायल टोलकर्मी को अस्पताल में लेकर गई जहां डॉक्टरों उसे मृत घोषित कर दिया। सीसीटीवी फुटेज में वारदात रिकॉर्ड हो गई लेकिन गाडी का नंबर और हमलावर की फोटा नहीं आई। हमलावर ने टोल के बदले में आईकार्ड जैसी काई वस्तु दिखाई थी। बताया जाता है कि टोल मांगने को लेकर चालक व टोलकर्मी में विवाद हुआ था। टोल स्थित कैबिम में लगे सीसीटीवी कैमरे में घटनाक्रम की तस्वीरें कैद हुई हैं। जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश के रीवा के निवासी अमेश कांत पांडे(23) गुरूवार रात राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या आठ पर मानेसर की ओर जाने वाली ग्यारह नंबर लेन में अपनी कैबिम में बैठकर टोल वसूल कर रहा था। अन्य टोल लेन में काम कर रहे कर्मचारियों के अनुसार करीब बारह बजे बोलरो कार में सवार एक युवक आया। उमेश के टोल मांगने पर कहासुनी हो गई। सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के अनुसार इस दौरान बोलेरो चालक ने उमेश आईडी जैसे की वस्तु दिखाई और छूट की बात कही। दस्तावेज दिखाने के बाद भी जब उमेश ने टोल काटना चाहा तो बोलेरो चालक ने गुस्से में आकर उमेश पर गोली चला दी और मौके से वाहन समेत फरार हो गया। उमेश घायल होकर केबिन से नीचे गिरा तब टोल पर तैनात अन्य कर्मचारियों को इसका पता चला।
यह पहली ऐसी घटना नही है जब कोई रसूख वाले किसी आदमी ने किसी की जान ली हो. आये दिन सड़कों पर ऐसी घटनाये होती रहती हैं. जब कोई अपना पहुच और रुतबे के कोई चूर आदमी किसी आम आदमी की जान ले लेता है. बाद के कानून भी ऐसे लोगों को जमानत पर छोड़ देती है. जान लेना कितना आसान है इन लोगों के लिए. एक छोटी सी बात पर किसी की जान ले लेना इनके लिए कोई बड़ी बात नही. जेस्सिका लाल मर्डर केस के भी यही हुआ था.
इन तथाकथिक लोगों को इतनी हिम्मत कहा से आती है जो ये किसी की ज़िन्दगी भी खतम करने से पहले कुछ नही सोचते. कौन हैं ये ज्यादा गुस्से वाले लोग ?
सच ही कहा गया है की गुस्सा एक इंसान को शैतान बना देता है....

Wednesday, 23 June 2010

उत्तरपूर्व की खबर क्या खबर नही है ?

उत्तरपूर्व की खबर क्या खबर नही है ? दिल्ली और मुंबई की खबरे ही राष्ट्रीय चैनल कहलाने वाले चैनलों पर छाए रहते हैं। दर्शक बेचारे मजबूर हैं। उन्हें जो दिखाया जाता है वो वही देखते हैं। और उसी को खबर मान लेते हैं। मुंबई और दिल्ली की खबर से छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के किसान को क्या फायदा हो सकता है। दरअसल आज के समाचार चैनल केवल वैसी ही खबरों को दिखाते हैं जिसका लेना देना केवल महानगरों में रहने वाले लोगो के लिया है।
अख़बारों में भले ही छोटी सी खबर आती है लेकिन मणिपुर के आर्थिक नाकेबंदी की खबर तो होती है। समाचार के देवतों को केवल वैसी ही खबर चाहिए होती है जिससे ज्यादा से ज्यादा टी आर पी मिले। उन्हें खबर से कोई लेना देना नही है। एक बच्ची के गड्ढे में गिरने की खबर को पूरे दिन भर दिखया जाता है और एक नाव के डूबने से ६० लोगो की मौत की खबर को १ मिनट का टाइम भी नही दिया जाता?
क्या समाचार चैनलों में वरिष्ठ पदों पर विराजमान महानुभाओं को ये दोयम सोच नज़र नही आती। ऐसा हो ही नही सकता। लेकिन उनके ऊपर भी तो उनके बॉस हैं जिनका आदेश भागवान का आदेश है। दर्शकों का ये भ्रम दूर होना ही चाहिए की समाचार चैनल को समाजसेवा या नैतिकता का काम नही कर रहे है। वो एक चोखा धन्धा कर रहे हैं।
अपराध, सेक्स, क्रिकेट, सिनेमा की खबरों को छोड़ कर शायद ही कोई खबर दिखती हो। भगवान भला करे की समाचार पत्र छप रहे हैं वरना खबरों को तो चैनल वाले खा ही जाते।

Thursday, 6 May 2010

आपका गोत्र क्या है?

सर जी आपका गोत्र क्या है? शादी से पहले लोग नाम और काम नही पूछते, पूछते हैं तो गोत्र.....गोत्र और गोत्र.....
निरुपमा पाठक को मरने के बाद बहुत लोग जान गए हैं.....मैं भी नही जानता, अगर उसकी हत्या नही होती। जात पात में बचपन से रूचि रही है। और अब तो इतना समझा में आ गया है की लोगो की पहचान बदल सकती है लेकिन जात नही....
आपकी जात ही आपकी सोच निर्धारित karti hai....मैंने कई लोगो को जात से ही किसी व्यक्ति की मानसिकता का अनुमान लगते देखा है।
उच्च वर्ण वाले निम्न वर्ण वाले की मानसिकता को छोटी बताते हैं और निम्न वर्ण वाले उच्च वर्ण वाले को उनकी मानसिकता की दुहाई देते हैं। मेरे दोस्तों में सभी जात और धरम वाले हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मैं किसी से उसकी जात नही पूछता....
आप कितने पढ़े लिखे हो या अमेरिका या इनग्लैंड में क्यों न रहते हों। जब शादी की बात बात आती है तो सबसे पहली बात गोत्र और जाति की आती है। इस मुद्दे पर को बहस करता है तो उसे टाइम बर्बाद करने वाला कहा जाता है या कहा जाता है की ये मेरा नीजी मामला है। निरुपमा के माता पिता भी उसके दूसरी जाति में शादी को अपना नीजी मामला समझकर उसे अपने तरीके से सुलटा रहे थे.....
दुनिया बहुत तरक्की कर रही है। लोग बहुत आगे बढ़ रहे है...लेकिन कुछ लोग है जो अपना पुरातनपंथी सोच को अपना अगली पीढ़ियों पर लादते जा रहे हैं। उन्हें निरुपमा की मौत से कोई सबक नही मिलती। और जो लोग ८ तारीख को इंडिया गाते पर मोमबतिया जला कर अपना प्रदर्शन करने जा रहे है क्या वो जाति और गोत्र को नही मानते?

Monday, 8 March 2010

मुखिया पति या सांसद पति ?

इस बार महिला दिवस एतिहासिक रूप में याद किया जायेगा.....महिलों के लिए यह अवसर गर्व करने का है वही
पुरुषों के लिए यह मौका खुश होने का है....
आरक्षण का उद्येश्य दबे कुचले शोषित वर्ग को समानता का अधिकार दिलाना है.....महिलाओं को भी पुरुष समाज ने दबाया और उनका शोषण किया....इस लिए उन्हें संसद में ३३ प्रतिशत का आरक्षण देने का फैसला लिया गया....लेकिन अफसोस की महिलाओं की स्तिथि में कोई बदलाव नही आया...
बिहार के पंचायत में महिलाओं को ५० प्रतिशत आरक्षण मिला है...लेकिन इसका पूरा उपयोग उनके पति महाशय कर रहे हैं....इसी प्रकार आगे सांसद पति देखने को मिलेंगे....भारतीय नारी अपने पति को देवता के रूप में पुजती है ऐसे मैं वो पति की हर हुक्म को भगवन का आदेश ही मानती है...महिला आरक्षण का विरोध करने वालों को महिलाओं के सांसद में से कोई आपत्ति नहीं है बल्कि आपत्ति है तो उनके पूजनीय पतिओं से....
पति जैसा भी क्यों न हो उसे बुद्दिमान मानती हैं महिलाए। पति भी अक्सर ये कहने से नही चूकता की महिलाओं की जगह घर में है.....लेकिन अगर महिला की लाइन में टिकेट जल्दी मिल जाये तो यही पति महोदय अपना पत्नी को आगे कर देते हैं.....और बात सांसद की सद्य्सता की हो तो फिर कौन पति सांसद पति कहलाना पसंद नही करेगा।
बात महिला आरक्षण के समर्थन या विरोध की नही है....बात है इस आरक्षण के उद्देश्य की। इसका सीधा फायदा किसे मिलेगा....महिलाओं को? शायद नही.........

Wednesday, 20 January 2010

आपको मराठी आती है ?

भारत का संविधान कहता है कि देश का कोई भी नागरिक देश के किसी भी भाग में जा कर रह सकता है, वही बस सकता है और अपने जीवनयापन के लिए वही कोई रोज़गार भी कर सकता है। लेकिन महाराष्ट्र में ये संविधान लागू नही होता।
महाराष्ट्र सरकार ने अपने फैसले के कहा है कि वह टैक्सी चलने का परमिट उन्ही को दिया जायेगा जो वह पिछले १५ सालों से रह रहा हो, उसे मराठी लिखना, बोलना और पढना आता हो। भारत के नक़्शे में आने वाले बम्बई नही नही, मुंबई के हमारे संविधान के विपरीत क़ानून लागू होते हैं। कोई उनकी बाहें नही मरोड़ता है। स्थानीय लोगों को रोज़गार दिलाने के लिए भारत के किसी भी राज्य में ये तरीका नही है। आप पंजाब में जाकर बिना पंजाबी के, बंगाल के बिना बंगाली के, गुजरात के बिना गुजरती के कोई भी काम कर सकते हैं। हालाँकि एक इंसान अगर कई सालों तक एक जगह रहता है तो वह की सारी चीज़ें भी सीख ही लेता है। तो भैया इसके लिए कोई कानून बनाने की क्या ज़रूरत है ?
राज भैया की चले तो वो मराठियों के विकास के लिए मुंबई को भारत से ही अलग कर दें। क्योकि अगर वो भारत के रहा तो वह भारत का संविधान लागू होगा। ये वो संविधान है जिसके एक एक शब्द का महत्व है। जो जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचलप्रदेश से गुजरात तक लागू होता है।
विदेशों में ये ज़रूर नियम है कि वहां का वीजा तभी दिया जायेगा जब वह जाने वाले व्यक्ति को वह की भाषा आती हो। लेकिन अब तो अपने देश में भी स्थानीय भाषा के बिना कोई काम नही कर सकता....