जी है नाम में क्या रखा, आदमी की पहचान उसके काम से होती है नाम से नहीं. ऐसा कहते कई लोग आपको मिल जायेगे जो ये बताना चाहते हैं की वो किसी जाति या मजहब में विश्वास नहीं करते. वो तो सिर्फ और सिर्फ मानवता में विश्वास करते हैं. कितने महान विचार हैं. लेकिन क्या सच में ऐसा है. बिलकुल नहीं. हम सभी के नाम एक खास जाति या मजहब को महिमामंडित करते हैं. आप कहेंगे कैसे तो इसकी कुछ बानगी नीचे दे रहा हूँ.
राम कुमार, श्याम सिंह, मनमोहन कुमार, सदा शिव, इत्यादि इत्यादि
रहमान, सुलेमान, काशिफ, अब्दुल्लाह इत्यादि इत्यादि
अलबर्ट, मिखेल, इत्यादि इत्यादि
नाम में ही आपको पहचान मिल जाएगी. इनके नाम से इनके मजहब का साफ साफ़ पता चलता है इसके बाद शुरू होती है जाति के लिए उपनाम लगाने की बारी.
इसकी जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं की आज के पढ़े लिखे युवा भी विदेशों में पढने के बावजूद अपनी रुढ़िवादी मानसिकता से बाहर नहीं आ पाते है और इस मानसिकता को छुपा कर अपने आधुनिक होने का ढोंग करते कहते हैं की नाम में क्या रखा है?
मैंने ये लेख किसी के सोच को ठेस पहुचने के लिए नहीं लिखी और ये मेरे बेहद निजी विचार हैं.