धंधा है तो चलाना ही पड़ेगा, चाहे उसके लिए कुछ भी क्यों ना किया जाये आज सभी परेशान हैं कि ताजमहल सात अजूबों कि सूची से ग़ायब ना हो जाये इसलिये sms या इन्टरनेट के जरिये वोट किये जा रहे हैं यह आतंक फैलाया जा रह है कि अगर ताजमहल को वोट नही मिला तो वो सात अजूबों में नहीं गिना जाएगा कि क्या किसी ने यह सोचा है कि अचानक ये कौन सी कंपनी आ गयी जिसने दुनिया के सात अजूबे कौन होंगे इसका फैसला करने का बीड़ा उठा लिया
बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा mobile ke जरिये हमारे मेहनत कि कमाई में सेंध लगायी जा रही है और हम चुप चाप इस तमाशे को देख रहे है और तो और उसमे हम बढ चढ़ कर हिस्सा भी ले रहे है
बाज़ार के हम इस क़दर गुलाम हो चुके हैं कि अब हमे अपने ही प्राचीन इस्मराको के लिए किसी प्रमाण पत्र कि आवश्कता पड़ने लगी है मान लीजिये अगर ताजमहल २१ नम्बर तो चोडिये अगर १०० नम्बर पर भी आता है तो क्या उसका महत्व हमारे लिए कम हो जाएगा आज अगर कुतूम्ब मीनार या खजुराहों कि गुफाएं उन २१ अजूबों में शामिल नहीं हैं जिनमे से ७ अजूबों का चयन होना है तो क्या उनका महत्व क्या कुछ कम हो गया है
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