Saturday 7 July, 2007

तालिबानी पंचायत

समाज में कुछ ऐसी घटनायें घट जाती हैं कि उससे यह विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि हम सचमुच 21 वीं सदी में जी रहे हैं। कहीं किसी महिला को डायन बताकर सरेआम उसे निर्वस्त्र करके मार दिया जाता है, तो कभी किसी अंतरजातीय युवा जोड़ी को विवाह करने पर दोनों में किसी एक की या दोनाें की हत्या कर दी जाती है। हम भले ही इंटरनेट या मोबाइल की दुनिया में जी रहे हो लेकिन असलियत यह है कि हमारा समाज आज भी उस बर्बर मध्ययुगीन काल में जी रहा है।

हाल में ही करनाल की एक तालिबानी पंचायत ने गांव के एक ऐसे जोड़ी को मौत की सजा सुना दी जिसने एक ही गोत्र में शादी करने जैसा पाप किया था। हिंदू धर्म में एक गोत्र में शादी करना पाप है। एक गोत्र में होने का मतलब है कि लड़के के पूर्वजों और लड़की के पूर्वजाें के बीच खून का रिश्ता था इस नाते दोनों भाई-बहन हुए। इस प्रकार के मामलों का निपटारा हमारे पंचायत द्वारा किया जाता है। जिसमें नियम-कानून को ताक पर रख कर एक ऐसा फैसला सुनाया जाता है। जिससे लगता है कि इस देश में कानून नाम की कोई चीज ही नहीं रह गयी है।

कानून में प्यार करना और अपनी मर्जी से शादी करना जुर्म की श्रेणी में नहीं आता है। बशर्ते लड़की की उम्र 18 वर्ष और लड़के की उम्र 21 वर्ष हो और दोनों बिना किसी दबाव के अपनी मर्जी से शादी कर रहे हों। कानून में यह भी बंधन नहीं है कि लड़के-लड़की एक ही धर्म और जाति के होने चाहिए, वे एक गोत्र के होने चाहिए और उनके माता-पिता की पूरी सहमति होनी चाहिए इत्यादि। ज्यादातर मामलों में जब एक लड़की एक लड़के से प्रेम विवाह करती है। तो लड़की पक्ष के लोगों लड़के खिलाफ अपहरण का मुकदमा करते है। उस समय लड़की के माता-पिता की स्थिति देखने लायक होती है। जब लड़की अदालत या थाने में खुद आकर यह गवाही देते है कि वह अपनी मर्जी से लड़के के साथ गयी थी और उसने बिना किसी दबाव के अपनी मर्जी से शादी की है।

हिंदू धर्म में प्राचीन ग्रंथों की बहुत मान्यता है। हिंदूओं में रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ को एक खास मान्यता प्राप्त है। लोग राम से प्रेरणा ग्रहण करते है। स्त्रीयों को सीता जी का उदाहरण देते हैं। सीता ने अपनी पति राम के साथ 14 साल वनवास में बिताया, आज की स्त्री ऐसा कर सकती है? राम अपने पिता के कितने आज्ञाकारी पुत्र थे कि उन्होंने पिता दशरथ के एकबार 14 वनवास देने पर उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। लेकिन क्या रामायण के उस भाग से लोग प्रेरणा ग्रहण नहीं करते जब राम जी को सीता जी ने एक स्वयंवर के माध्यम से चुना था। जिसमें राम जी ने धनुष तोड़ कर अपनी वीरता साबित की थी। उस समय भी सीता जी को अपने वर के चुनाव का अवसर दिया गया था। लेकिन आज किसी स्त्री को यह अवसर प्रदान करना हिंदू धर्म में कतई मान्य नहीं है।

हिंदू धर्म के एक और प्राचीन ग्रंथ महाभारत से भी कई उदाहरण आम जिंदगी में देते हुए लोग नहीं थकते है। इन ग्रंथों से हमें शिक्षा मिलती है। लेकिन हम कुछ प्रसंगों से कोई शिक्षा नहीं लेते है। प्रेम की विवाह की मान्यता हमारी प्राचीन धर्म ग्रंथ देते हैं। प्रेम विवाह आधुनिकता की पहचान नहीं है। हिंदू देवी-देवताओं में कई ने पहले प्रेम किया तत्पश्चात विवाह किया है। कैलाश पर्वत पर विराजमान शिव को पाने की खातिर पार्वती ने ना जाने कितने वर्षो तक तप किया। उनकी जिद थी कि वह शादी करेगी तो सिर्फ शिव शम्भू से ही करेंगी। यह सब को ज्ञात है कि किस प्रकार पर्वतराज हिमालय ने इस शादी का विरोध किया था और पार्वती को समझाया था कि इतने ऐशो आराम से तुम पली बढ़ी हो, तुम उस कैलाश पर्वत पर रहने वाले, भूतों के संगी और धतुरा खाने वाले शिव के साथ कैसे रह पाओगी।

पार्वती भगवान शिव से किसी प्रकार विवाह करना चाहती थी। यह भी एक प्रेम विवाह का उदाहरण है। श्रीकष्ण भी किशोर से ही थोड़े रसिक मिजाज के थे। बचपन में दूसरों की घरों से मक्खन चुरा कर खाना उन्हें पसंद था। किशोर होने पर उन्होंने नदी में नहाने वाली गोपियों के कपड़े चुराया था। गोकुल में गोपियों के साथ रासलीला को हम आज भी रासलीला मंडलियों के माध्यम से होते देखते है। सभी जानते है कि राधा उनकी प्रेमिका थी। प्राचीन ग्रंथों में ही प्रेम करना गुनाह नहीं है तो आज के पंचायतों को किसने यह अधिकार दिया है कि वह प्रेम करने वालों और विवाह करने वालों को मौत का फरमान जारी कर दे।

इससे पहले भी पंचायतों ने अपना हत्यारा चेहरा पेश किया है। जिसमें किसी विधवा गरीब महिला को डायन बताकर निर्वस्त्र करके पीट-पीट कर मार डाला जाता है। कई स्वयंसेवी संगठनों ने इस मामले की पड़ताल कर इस बात का पता लगाया है कि इस तरह के काम गांव के ही कुछ दबंग लोग किसी गरीब और लाचार महिला की जमीन को हथियाने के लिए इस प्रकार का हथकडा अपनाते है। दबंगों द्वारा कथित रूप से डायनों के मारने के जिस तरीके का प्रचलन है वह मानवता की सारी हदों को पार कर जाता है। इस प्रकार से तरीके में कानून का भी डर नहीं होता और उनका सोचना होता है कि इससे सांप भी मर जायेगा और उनकी लाठी भी नहीं टूटेगी। पंचायत के सामने पुलिस हाथ जोड़े मुकदर्शक की भूमिका निभाती है। दबंगों की चमची बनी पुलिस गरीब की हत्या को पब्लिक मोशन में हुई बताकर रफा दफा कर देती हैं।

भारतीय संविधान में किसी को सजा देने का अधिकार न तो पंचायत को है और ना ही पुलिस को। पंचायत को छोटे-मोटे मामलों को निबटाने का अधिकार दिया गया है, अगर वह मामला ज्यादा बड़ा हो तो उसे अदालत के माध्यम से ही निबटाना अनिवार्य है। लेकिन इन मामलों में पंचायत बिना मानवता की परवाह किए एक ऐसा तालिबानी फैसला सुना देती है जिससे मानव जाति को इस समाजिक ताने बाने से घिन होने लगती है।

1 comment:

अरविंद चतुर्वेदी said...

बड़ी लम्बी बहस है कुछ शब्दों में समेटना बहुत ही मुश्किल है। फिर भी इसके लिए कुछ लाइनें हंै मेरे पास.....................
समाज के नाम पर कुछ चुभता है मेरे दिल में। स्वाथॻ ही समाज है और यही स्वाथॻ मै हूँ। केन्द्र में यही स्वाथॻ है तो समाज का अस्तित्व मायने नही रखता है। रही बात समाजिक ताने-बाने की तो आज वो है ही नही। यहां पिता पुॼ का नही। पत्नी अपनी पति की नही। तो कैसे दूसरों को लेकर तुम सामाजिक परिभाषा गढ़ सकते हो। कृष्ण ने कहा था अह्म ब्रह्राम्सी मै अपने आप में पूणॻ हूँ । यह कथन वाक़ई अपने आप में पूरा है। सो मै अगर ठीक हूँ तो जग भी ठीक है।