Thursday, 26 July 2007

कलाम ने बनाया राष्ट्रपति भवन को जनता का



पांच बरस के प्रवास के बाद राष्ट्रपति भवन से विदा हो रहे राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की यादें इस ऐतिहासिक इमारत से कभी नहीं मिट पाएंगी, जिसे उन्होंने जनता का भवन बनाया। हर दिन 15 घंटे काम करने के बाद भी चुस्त-दुरुस्त नजर आने वाले कलाम नियमित तौर पर व्यायाम करते हैं और सुबह की सैर भी उनके दैनिक कार्यक्रम का हिस्सा है। शुरू-शुरू में कलाम 329 एकड़ क्षेत्र में फैले राष्ट्रपति भवन के परिसर में सुबह टहलते थे, लेकिन जब उन्हें अहसास हुआ कि उनकी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था राष्ट्रपति भवन के परिसर में रह रहे कर्मचारियों के लिए परेशानी का कारण बन जाती है तो उन्होंने घूमना बंद कर दिया। वह सिर्फ बगीचों में कुछ देर टहल लेते थे।

पांच साल पहले जब कलाम राष्ट्रपति भवन में आए थे तो इस ऐतिहासिक भवन और परिसर के कई पुराने हिस्से मरम्मत व रखरखाव के अभाव में जर्जर हो चुके थे। कहीं बिजली नहीं थी तो कहीं से बारिश का पानी रिसता था। जल निकासी की समस्या भी थी, लेकिन कलाम ने इस ओर ध्यान दिया और पूरी व्यवस्था दुरुस्त की। उन्होंने परिसर में रहने वाले कर्मचारियों के मकानों की मरम्मत और साज-सज्जा भी कराई।

लोगों से सीधे संवाद स्थापित करने की कलाम की आदत ने परिसर की शीघ्र ही सूरत बदल दी। यहां खेल सुविधाओं का विस्तार हुआ तथा खेल के आयोजन किए जाने लगे। इन आयोजनों में राष्ट्रपति भवन के कर्मचारियों के करीब पांच हजार सदस्य भाग लेते थे। राष्ट्रपति भवन का कायाकल्प करने की कलाम की ही कोशिशों के चलते वहां के बगीचों में नए पौधे लगाए गए। इसके अलावा औषधियों के पौधों वाले दो उद्यान कलाम की ही कोशिश का नतीजा हैं। जैविक डीजल को प्रोत्साहन देने के लिए रतनजोत की खेती भी परिसर में शुरू की गई।

उभरते कलाकारों को मौका देने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम इंद्रधनुष का आयोजन नियमित रूप से किया गया। बच्चों के प्रति विशेष स्नेह रखने वाले कलाम ने उनके लिए राष्ट्रपति भवन में विशेष गैलरी बनवाई। रसोई घर में रखे पुराने बर्तनों को संग्रहित करने के लिए उन्होंने एक रसोई संग्रहालय बनवाया। पुस्तकालय डिजिटल किया गया। सभागार का निर्माण स्वीकृत हुआ और विदा होने से तीन दिन पूर्व 21 जुलाई को उन्होंने इस सभागार का उद्धाटन भी किया।

राष्ट्रपति हर पांच साल में एक बार अपने अंगरक्षकों के लिए 'राष्ट्रपति बैनर' का आयोजन करते हैं। लेकिन बच्चों के लिए इस आयोजन का विशेष शो दूसरी बार आयोजित किया गया।
उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि हर दिन उनकी वेबसाइट पर करीब 20 लाख लोग विजिट करते हैं। खुद कलाम हर दिन औसतन 300 ईमेल का जवाब देते हैं। जनता के राष्ट्रपति के रूप में मशहूर कलाम को अध्ययन से गहरा लगाव है। वह कह चुके हैं कि पद छोड़ने के बाद अध्यापन कार्य पुन: आरंभ कर देंगे। इसकी शुरुआत 27 जुलाई को चेन्नई स्थित अन्ना विश्वविद्यालय से हुई। उसके बाद वह महाराष्ट्र के वर्धा स्थित रूरल यूनिवर्सिटी में गये।

कलाम ने बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय, तमिलनाडु के गांधी विश्वविद्यालय और तिरुवनंतपुरम के अंतरिक्ष विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने की मंजूरी भी दी है। उपहारों से खासा परहेज रखने वाले कलाम कह चुके हैं कि बुधवार को जब वह राष्ट्रपति भवन छोड़ कर जाएंगे तो उनके साथ केवल दो छोटे सूटकेस होंगे, लेकिन किताबों में तो कलाम के मन प्राण बसते हैं इसलिए अध्ययन के शौकीन 'मिसाइल मैन' अपनी किताबें अपने साथ ले जाएंगे। अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कभी उपहार नहीं स्वीकार किए।

कलाम की मानवीय संवेदनाओं की झलक भी इन पांच सालों में खूब नजर आई। पेड़ से गिर कर मारे गए एक बच्चे के माता-पिता को झारखंड से दिल्ली बुलवा कर मुआवजे का चेक उन्होंने अपने हाथों से दिया। हिरन के एक बच्चे का पैर टूटने के बाद कलाम उसे बोतल से खुद दूध पिलाते थे। एक मोर की आंखों में मोतियाबिंद होने पर उन्होंने उसका आपरेशन करवाया और उसके ठीक होने तक उसकी देखभाल की।

जब कलाम के हाथों की हड्डी टूटी थी तो वह प्लास्टर चढ़वाने के बाद बिना छुट्टी लिए सीधे आफिस आ गए थे। दिन में लगातार 15 घंटे तक काम करने के आदी कलाम ने अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में कभी छुट्टी नहीं ली। मंच से उतर कर बुजुर्गो को सम्मानित करना, जनरल मानेकशा, खुशवंत सिंह, भीमसेन जोशी जैसी बुजुर्ग हस्तियों के घर जाकर उनकी सेहत की जानकारी लेना, इफ्तार दावतों के बजाय उसका धन जरूरतमंदों को देना, राष्ट्रपति बनने के बाद कोई मानद उपाधि न लेना, नई बीएमडब्ल्यू कार लेने से मना कर देना और विवाह समारोहों में न जाकर नवदंपतियों को आमंत्रित कर चाय पिलाना आदि उनकी विशेषताओं में शामिल हैं।

कलाम ने अपने कार्यकाल के दौरान कभी अपने रिश्तेदारों को राष्ट्रपति भवन में नहीं ठहराया। भवन के कुल 340 कमरों में से उन्होंने केवल दो ही कमरों का इस्तेमाल किया। लेकिन पूरे भवन की साजसज्जा, वहां नए कंप्यूटर लगवाना और आधुनिक सुविधाएं जुटाने के अलावा एक सर्वसुविधा संपन्न स्टूडियो कलाम की ही देन है।

उड़ीसा की एक एड पीडित बच्ची ने अपने और भाई के इलाज के लिए कलाम से मदद मांगने के लिए उन्हें पत्र लिखा था। इस बच्ची के अभिभावकों की एड से ही मौत हो चुकी है। कलाम ने पत्र पाते ही इस बच्ची के लिए 20 हजार रुपये का मनीआर्डर भेज दिया। निश्चित रूप से 'जनता का यह राष्ट्रपति' अपनी सहजता और सरलता के कारण हमेशा जनमानस के स्मृति पटल पर छाया रहेगा।

1 comment:

उन्मुक्त said...

एक बार कलाम साहब से रूबरू होने का मौका मिला - कमाल के व्यक्ति हैं।