Wednesday, 5 September 2007

महानगरों में मरती मानवियता

दिल्ली दिल वालों की कहलाती है ऐसा मैंने सुन रखा था लेकिन अपने रूप पर इठलाती दिल्ली की एक और सुरत भी देखने को मिला। कालकाजी इलाके के एक घर में तीन बहने अपनी मौत का इंतजार कर रही थी। इनमें से एक बहन को भूख ने हरा दिया। चार दिन तक उसकी लाश पड़ी रही। किसी मोहल्ले वाले ने इतनी जहमत नहीं उठाई कि वह पता कर सके कि इस घर के अंदर का तीन इंसान मौत का इंतजार कर रहे हैं। मोहल्ले वालों की नींद तब टूटी जब एक बहन की लाश की बदबू फैल गयी और सारा माजरा सामने आ गया। खैर बाद में मोहल्ले वालों के अंदर का इंसान जाग उठा और अब दो बहने उन्हीं की रहमोकरम पर जिंदा हैं।

दूसरी घटना एक मॉडल की सामने आयी जिसने कभी सुष्मिता सेन के साथ काम किया था और आज वह सड़कों पर मारी मारी फिर रही है। दान-पुण्य में बढ़ चढ़ कर विश्वास करने वाले महानगरों में रहने वाले लोगों के पास इतना वक्त ही नहीं होता कि वह अपने घर में रहने वालों की खैर खबर ले सके तो अपने पड़ोसियों के बारे में सोचना तो दूर की बात है।

''मानवता, संवेदना, दया, परोपकार.................जैसे शब्द सिर्फ किताबों में शोभा देते हैं'' यह कहना है एक औसत मानसिकता वाले इंसान का जिसकी सारी जिंदगी पैसों के पीछे भागते-भागते खत्म हो जाती है। उनके लिए पुण्य कमाने कमाने का एक शार्टकट रास्ता साल में एक या दो बार किसी धार्मिक स्थल का दौरा करना होता है या किसी बड़े धार्मिक उत्सव का आयोजन करवाना।

1 comment:

Anonymous said...

भाई क्या किया जा सकता है, जब सारी दुनिया पैसे के पिछे भाग रही हो और आप का सादापन आप कि ताकत नही आपकी कमजोरी समझी जाए, तब लोग समाज के साथ अंधी भागमभाग के साथ ही भागेगे। दिल्ली तो वैसे भी रिफयूजियो कि बस्ती है। यहा के लोग बिल्कुल नए तरीके से जीते है। यहा के लोगो को अपने पडोसी का हाल नही मालूम रहता, लेकिन लोग "Social Networking" के नाम पर पुरी दुनिया को अपनी सुनाने कि खवाहिश रखते है।
कामरान परवेज़
www.intajar.blogspot.com