Sunday, 11 November 2007

घरेलु हिंसा की मौन सहमति......




वह बेचारी दिन भर काम करती है....पति और बच्चों की देखभाल करती है....थकी और बीमार होने पर भी काम करती है....चुपचाप बिना शिक़ायत किये काम करती है....पिटती है फिर भी काम करती है....


मैंने ये चंद शब्द भारतीय नारियों के बारे में लिखने की एक कोशिश की है....हाल में ही परिवार सर्वेक्षण में ५४ फीसदी महिलों ने घरेलु हिंसा को जायज़ ठहराया....अब भला जिस पर आत्याचार हो रह हो और वही उसे सही ठहराए तो......शायद यही कारण है कि उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में कानून बनने के १ साल के बाद १ भी घरेलु हिंसा का मामला दर्ज नहीं किया गया...


जब राष्ट्रपति पद पर श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल आसीन हुई थीं, तब मैं १ लड़की से पूछा था कि १ महिला का देश के सर्वोच्च पद प्राप्त करने के बाद क्या महिलाओं की स्थिति सुधरेगी तो उसने कहा था कि हाँ, १ महिला ही १ महिला के दुख दर्द को समझ सकती है....


मुझे पता नहीं की क्यों महिलाएं अपनी स्थिति को सुधारना नहीं चाहतीं....वो क्यों सदियों से आज तक शोषित और प्रतारित होती रहीं हैं....अपने पति को भगवान् का दर्जा देने वही महिलाएं अपने धरती के भगवान् के खिलाफ चू शब्द भी क्यों नहीं निकलतीं....आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरषों से कन्धा मिल कर चल रहीं हैं....बात चाहे UPA अध्यक्ष सोनिया गाँधी की हो या उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की....ये भी महिलाएं है....और आज इनके पद की वजह से न जाने कितने पुरुष इनसे खौफ खाते हैं....पुरुषवादी समाज में जब तक महिलाएं विद्रोह नहीं करेंगी तब तक वह अपने भाग्य को कोसती रहेंगी....फिर घरेलु हिंसा जैसा कोई कानून उनके किसी काम नही रहेगा....

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छा लेख है ।

पुनीत ओमर said...

आज भी ऐसी कोई बात चलती है तो कुछ बड़ी बड़ी हस्तियों के नाम गिनाये जाते हैं जो बड़े पदों पर आसीन हैं. आपने भी गिनाये ही हैं. जिस दिन हमें नाम गिनाने की आवश्यकता ख़त्म हो जायेगी उस दिन ये शोषण भी ख़त्म हो जाएगा.