शायद अपने इस बीमारी का नाम पहले शायद ही सुना हो। ये न तो जानलेवा है और न ही ये एक से दुसरे में फैलती है। ये बीमारी सिर्फ़ पढे लिखे लोगों को होती है। इन्हें अंग्रेजी की अच्छी जानकारी होती है। एक और बात इनकी कमाई भी अच्छी होती है। मैंने रोगी के पहचान बताइए हैं, रोग के नहीं। रोग के लक्षण हैं तनाव, अनिन्द्रा और नापुन्श्कता भी। ये रोग सिर्फ़ उन्हीं को होता हैं जो आई टी से जुड़े काम करते हैं, ये काम हैं कॉल सेंटर और बी पी ओ वाले।
मुझे भी नही पता था की ये रोग इतना खतरनाक हैं। एक साप्ताहिक पत्रिका में छापी सर्वे ने चौका दिया। बेंगलुरु के ९०० आई टी पेशेवरों पर किए गए एक सर्वे में ये बात सामने आई कि यहाँ के ३६ प्रतिशत कर्मचारी मनोरोगी हैं, २० में से १ कर्मचारी हमेशा खुदकुशी के बारे में सोचता रहता हैं, २८ प्रतिशत कर्मचारी लगातार तनाव में रहते हैं, वही सबसे बड़ी बात कि ३०० महिला और पुरूष प्रजनन सम्बन्धी विकार से ग्रस्त पाए गए।
अब भी हम उसी खुशफहमी हैं कि आई टी ये रोज़गार दे कर युवाओं की तकदीर बदल दी हैं। भइया तकदीर बदली हो या न बदली हो लेकिन आने वाली नस्ल ज़रुर इस काम से तौबा करने में अपनी भलाई समझेगी।
3 comments:
क्या करें,
गन्दा है पर धन्धा है ये...
ये तो ठीक है भाई साहब की तनाव ही तनाव है आईटी सेक्टर में। लेकिन एक सर्वे मीडिया(इलेक्ट्रानिक) के लोगों पर करवाएं पता चल जाएगा यहां के लोक कितने प्रेशर और घुटन भरे माहौल में काम करते हैं। टाइम पर स्टोरी न देने पर इनकी रोज मां बहन होती है। बावजूद इसके इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले खुद को लोकतंत्र के हिमायती बताते हैं।
bahut thik kaha hai apne. zayada anubhav to nahi hai lekin bhukbhogi se milta raha ho. survey aap hi karvaye, main pura sahyog karunga.
Post a Comment