Tuesday 24 June, 2008

जानने का हक


सर.......सर.....सर.....सर जी ......म......मुज......मुझे अपने ऍप्लिकेशन के बारे में जानना है? अधिकारी उसकी तरफ देख कर कुछ भी जवाब नहीं देता है। वो आदमी फिर पूछता है और अधिकारी गुस्से में कहता है की एक महीने बाद आकर पता कर लेना। आदमी बोलता है की सर मुझे तो ६ महीने हो गए लेकिन अभी तक मेरा राशन कार्ड नहीं बना है। अधिकारी बोलता है की मैं क्या करूँ इस काम में टाइम लगता है। वो आदमी निराश लौट जाता है। फिर एक महीने के बाद जाता है फिर वही जवाब....ये सिलसिला चलता रहता है।

इस परेशानी से हम आप सभी गुजरें हैं। किसी भी काम के बारे में जानने के लिए सरकार ने २००५ में जानने का अधिकार दिया लेकिन आज भी इसका इस्तेमाल गिने चुने लोग ही करते हैं। जो लोग अपने इस अधिकार का उपयोग करते हैं। उन्हें भी अधिकारी सीधे सूचना नहीं देते जबतक की बात ऊपर तक न पहुच जाए। बिहार में तो सूचना मांगने पर झूठे मामले में फ़साने का किस्सा सामने आया है।

आख़िर क्या कारण है की कोई भी विभाग सीधे आम जनता को कोई जानकारी देने से कतराता है। ज़ाहिर है दाल में कुछ काला नहीं बल्कि सारी दाल ही काली है। सभी जानते है की सरकारी विभाग में लक्ष्मी की पूजा होती है। वह बिना पैसा चढाये एक पत्ता भी नही हिलता। सरकार ने जनता को ये अधिकार तो सौप दिया लेकिन अपने मुलाजिम को जनता से वयवहार करने का तरीका बताना भूल गए। जो सरकारी कर्मचारी काम करते है, वो इस तरह करते है जैसे वो कोई परोपकार कर रहे हो। भइया आपको उसी काम को करने के लिए सरकार ने नौकरी दी है। जानने का हक एक चाबुक है जिससे सभी सरकारी कर्मचारियों को नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन उनका क्या जिन्होंने नहीं सुधरने की कसम खा रही है।

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