Wednesday 13 August, 2008

आज़ादी की तस्वीर

फिर आयी आज़ादी की शाम.....लेकिन ये शाम कुछ डरावनी है. हर इंसान डरा और सहमा है इस आज़ादी की शाम में...कुछ लोग हैं जिनके लिए इस आज़ादी का कोई मायने नहीं। इन्होने ठाना है की किसी को सुख चैन से बैठने नही देंगे. इनकी कोशिश है की लोग केवल आतंक में रहें. पिछले कुछ दिनों में जितने धमाके हुए और जितनी जाने गयी. ये देश के दुश्मनों की जीत है. हम इन धमाकों से कोई सीख नही लेते । सरकार जांच करती है और गुनाहगार के पड़ोसी देश में होने का बहाना बना कर उस जांच को बंद कर देती है...कुछ दिनों बाद फिर एक धमाका होता है और कई मासूमो को अपनी जान गवानी पड़ती है और फिर एक जांच शुरू होती है...ये सिलसिला चलता रहता है और आज़ादी का जश्न का दिन आ जाता है...दोस्तों आज ज़रूरत है की इस आज़ादी के जश्न को सच मायने में मानाने की फिर कोई बच्चा अनाथ न होने पाए...फिर कोई अबला विधवा न होने पाए....की फिर किसी बूढे माँ बाप की लाठी न टूटने पाए..ये सम्भव है लेकिन इन पंक्तियों को कायम करना होगा......
"जंग है तो जंग का मंज़र भी होना चाहिए, सिर्फ़ नेजे (भालें) हाथ में हैं सर भी होना चाहिए,
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही, मेरी कोशिश है की सूरत भी बदलनी चाहिए."

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