Sunday, 30 August 2009

बोलना मना है.......

एक फिल्म आयी है....."तेरे संग", आपने शायद सुना भी या न भी सुना हो, लेकिन ये फिल्म चल रही है. और सब फिल्मो की तरह इसका जोरशोर से प्रचार नहीं किया गया. इस फिल्म का सब्जेक्ट ही ऐसा है की तथाकथित इज्ज़तदार लोग इसे न तो खुद देखेंगे और न ही दुसरो को देखने देंगे. फिल्म में एक नाबालिग़ लड़का एक नाबलिब लड़की को गर्भवती कर देता है. मेरे एक लाइन से आपको समझ में आ गयी होगी की ये फिल्म कितना विवादस्पद है. फिल्म के संवाद को सुन कर इसका अंदाजा लग जाता है की फिल्म ने इस तरह के रिश्ते को कोई गुनाह नहीं बताया है.
समाज में ऐसे कई लोग बैठे है. जिनका काम केवल ये देखना है हमारा बच्चा इन सब बातो से दूर रहे. उनका कहना है की अगर बच्चे ये सब देखेंगे तो वही सब करने भी लगेंगे. अगर किसी फिल्म में हीरो आतंकवादी बन जाता है तो सब दर्शक आतंकवादी बनाने को तैयार हो जायेंगे. अगर फिल्म में कोई खून करता है तो युवा वर्ग उससे खून करना सिख लेगा. ये मेरा नहीं समाज के ठेकेदारों का कहना है.
यहाँ तो फिल्म में अगर पति पत्नी को प्यार करता है तो सीटिया बजने लगती है. फिल्म समाज का आइना होता है. जो समाज में हो रहा है या हुआ है उससे ही फिल्म की कहानी प्रेरित होती है. लेकिन इस सच्चाई से सब वाकिफ होकर भी अनजाने बनाने का ढोंग करते हैं. सच सब को पसंद है लेकिन उसे सुनना किसी को पसंद नहीं......

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