Saturday, 3 October 2009

ये कैसा दलित प्रेम ?

हमें महात्मा गाँधी के बताये मार्ग पर चलना है। महात्मा गाँधी ने दलितों को एक नाम दिया "हरिजन" इसका मतलब है भगवान् के बन्दे। बीते २ अक्टूबर को कांग्रेस के नेताओ ने दलित प्रेम का ढोंग किया। राहुल के प्रयास और सोनिया गांधी के फरमान से कांग्रेसी सांसद दलितों के घर मेहमान बनकर तो पहुंचे मगर जमीनी हकीकत कुछ अलग ही सामने आई। एक सांसद दलित के घर खाना खाने की बजाय एक पूर्व विधायक के घर जमकर मुर्गे उ़डाने पहुंच गए तो सांसद अजहरूद्दीन ने दलित की बजाय हलवाई से खाना बनवाकर खाया। उधर, उन्नाव में सांसद अन्नू टंडन ने दलित बस्ती में खाना दलित बस्ती में खाना तो जरूर बनाया पर खाना खाने की बारी आई तो ताजा मंगवाई प्लास्टिक की थालियां और गिलास आए। राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल भी खाना बनवाने के लिए हलवाई साथ लेकर दलित बस्ती में पहुंचे और रात में मोटे गद्दों और जनरेटर सेट का इंतजाम कर सोए। दरअसल राहुल गांधी के संकल्प और सोनिया की मंशा ने शुक्रवार को कांग्रेसियों के पसीने निकाल दिए। बापू के जन्मदिन पर मलिन बस्तियों में दलितों के साथ खाना खाने और रात बिताने की कसम या तो वे पूरी नहीं कर पाए या फिर की भी तो हांफते-कांपते महज उसका कोरम पूरा किया। इम्तेहान की इस ƒ़ाडी में ज्यादातर कांग्रेसी सांसद रस्म अदायगी भी नहीं कर पाए।कुछ नेताओं को दलितों के साथ का खाना हजम करते नहीं बना तो कुछ को नींद नहीं आई। बहराइच के सांसद कमल किशोर कमांडो को यूं तो दलित बस्ती में होना था, मगर एक पूर्व विधयाक के घर पर उ़डाई मुर्गे की दावत। फिर निकल प़डे दलित बस्ती की तरफ। मुरादाबाद के सांसद और पूर्व क्रिकेटर अजहरूद्दीन दलित बस्ती तो पहुंचे मगर खाना बनवाने के लिए बकायदा हलवाई के इंतजाम के साथ। उन्होंने मुरादाबाद के कांठ इलाके में एक दलित के घर बैठकर खाना खाया, मगर वह दलित के घर नहीं बना था। यह खाना अजहर के लिए हलवाई के पास से आया था। जाहिर है जब खाना हलवाई का खाया तो वह दलित के आंगन में कैसे बैठते इसलिए बकायदा कुर्सी मेज का इंतजाम किया गया। उधर, केंद्रीय राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल की दलित बस्ती में ठहरने की कवायद जलसे में बदल गई। खाना बनवाने के लिए हलवाई बुलाया गया। श्रीप्रकाश जायसवाल का काम भी हो गया और गांव के लोग भी खुश। रस्म अदायगी का आलम यह रहा कि रात बिताने के लिए कानपुर के जायसवाल के लिए बकायदा शामियाना लगा। पंखे मंगवाए गए। साथ में मोटे गद्दे और जनरेटर सेट का भी इंतजाम किया गया, ताकि रात में बिजली चली भी जाए तो मंत्रीजी की नींद में गर्मी खलल ना डाले। दलितों के जीवन की हकीकत जानने गए मंत्रीजी को शायद यह नहीं पता कि मलिन बस्ती में लोगों के पास जनरेटर तो दूर पंखे तक नहीं हैं। मगर जब गांधीजी पर बोलने लगे तो जमकर बोले। इन सांसदों और राहुल गांधी में जमीन आसमान का अंतर है। राहुल ने दलितों के घरों में चारपाई पर रात गुजारी। पतला सा कंबल ओढ़ा और न पंखे की परवाह की और न ही खाने की। जाहिर है राहुल गांधी को जब अपने सांसदों के घर गुजारी एक रात की हकीकत का पता लगेगा, तो तय है उन्हें काफी तकलीफ होगी।

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