पत्रकारिता के भिश्मपितामाहा नहीं रहे ये खबर आयी तो विश्वास नहीं हुआ. जितना उनके बारे में पढ़ा और उनको जाना उससे तो ये लगा की वो सचमुच में एक जिंदादिल इंसान थे. ऐसा लग रहा है जैसे हमरे अभिवाभाक नहीं रहे.....उनकी आत्मा को भगवान् शांति दे.
मैंने हमेशा उन्हें अपना आदर्श माना है और मानता रहूँगा. पत्रकारिता में आने पर जिस अख़बार में सबसे पहली चिट्टी छपी वो जनसत्ता ही थी. मैंने इस अख़बार के लिए काम भी किया. इस अखबार में मुझे काफी कुछ सिखाया. कई बार सोचा की प्रभाष जी से मिलू लेकिन सोचता ही रह गया. दरअसल उनके बारे में सुन कर ही काफी कुछ जान गया था. उनकी किताबें पढ़कर भी काफी कुछ पता चला. सच कहू तो मैं भी उनकी तरह ही बनाना चाहता हूँ. उनकी सम्पादकीय से लिखना सिखा...उनकी बेबाक लेखनी का मैं कायल हूँ. वो जो भी लिखते है वो लाजवाब होता है. चाहे वो क्रिकेट हो या धर्म..
लेकिन इस रविवार को कागद कारे पढने को नहीं मिलेगा. उस महान आत्मा को मेरा सतसत नमन.......
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