
अख़बारों में भले ही छोटी सी खबर आती है लेकिन मणिपुर के आर्थिक नाकेबंदी की खबर तो होती है। समाचार के देवतों को केवल वैसी ही खबर चाहिए होती है जिससे ज्यादा से ज्यादा टी आर पी मिले। उन्हें खबर से कोई लेना देना नही है। एक बच्ची के गड्ढे में गिरने की खबर को पूरे दिन भर दिखया जाता है और एक नाव के डूबने से ६० लोगो की मौत की खबर को १ मिनट का टाइम भी नही दिया जाता?
क्या समाचार चैनलों में वरिष्ठ पदों पर विराजमान महानुभाओं को ये दोयम सोच नज़र नही आती। ऐसा हो ही नही सकता। लेकिन उनके ऊपर भी तो उनके बॉस हैं जिनका आदेश भागवान का आदेश है। दर्शकों का ये भ्रम दूर होना ही चाहिए की समाचार चैनल को समाजसेवा या नैतिकता का काम नही कर रहे है। वो एक चोखा धन्धा कर रहे हैं।
अपराध, सेक्स, क्रिकेट, सिनेमा की खबरों को छोड़ कर शायद ही कोई खबर दिखती हो। भगवान भला करे की समाचार पत्र छप रहे हैं वरना खबरों को तो चैनल वाले खा ही जाते।
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